शाहजहांपुर: बढ़ रहा नदियों का जलस्तर, बाढ़ का खतरा, गांवों के लोग चिंतित

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Published By Om Parkash chaubey
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बारिश के साथ-साथ डाम से पानी छोड़ने से बढ़ रहा जलस्तर, राम गंगा, गंगा और गर्रा नदी में पानी बढ़ने से सता रहा डर

शाहजहांपुर,अमृत विचार: लगातार हो रही बारिश और बैराजों से छोड़े जा रहे पानी के चलते बाढ़ का खतरा सता रहा है। नदियों का जलस्तर बढ़ने और पानी छोड़ने का क्रम शनिवार को भी जारी रहा। जिसके चलते नदियों के किनारे बसे लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। हालांकि अभी तक बाढ़ जैसे हालात नहीं बताए जा रहे हैं।

शनिवार को गंगा का जलस्तर 162.15 रहा जोकि शुक्रवार की अपेक्षा 0.65 गेज ज्यादा रहा। इसी तरह रामगंगा का जलस्तर 0.24 और गर्रा का जलस्तर 0.15 गेज ज्यादा रहा। इसी तरह रामगंगा नदी में 20084 क्सूसेक और गर्रा नदी में 623 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। खन्नौत नदी का जलस्तर भी बढ़ गया है। नदियों का जलस्तर दिनोदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि इनमें बैराज से अतरिक्त पानी छोड़ा जा रहा है।

साथ ही बारिश भी जारी है। शुक्रवार को रामगंगा नदी में नरौरा बांध से 20397 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। गर्रा नदी में दियूनी बैराज से 619 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कलान क्षेत्र के गांव आजाद नगर, इस्लामनगर, वीघापुर, जलालाबाद क्षेत्र में अल्हादादपुर बैहारी, कोला, सदर क्षेत्र में सहबेगपुर व जलालनगर बाहन व सुभाष नगर चुंगी में अब तक बाढ़ का कोई प्रभाव नहीं है।

इन सभी क्षेत्रों से बाढ़ आपदा प्रबंधन में भेजी रिपोर्ट में बताया है कि अभी कहीं बाढ़ की
स्थिति नहीं है। ग्रामीण घबराए नहीं। बताया जा रहा है कि शुक्रवार को छोड़ा गया बैराजों से पानी शनिवार को जिले में पहुंच गया। इसी कारण भी जलस्तर बढ़ा हुआ देखा गया। लगातार बढ़ रहे जलस्तर से ग्रामीणों का मन आशंकाओं से भर रहा है। सबसे ज्यादा चिंता उन लोगों को हो रही है जिनके घर नदियों के पास बने हुए हैं।

इसी तरह नदियों के पास बसे गांवों में रहने वाले ग्रामीण भी चिंता में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के मौसम में चार महीने तक उनके दिलों की धड़कनें बढ़ी रहती हैं। जब भी मूसलाधार बारिश होती है न चाहते हुए भी उनके मन में बाढ़ का ख्याल आ जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि अरसे वह नदी पास वाले क्षेत्रों में रह रहे हैं।

अब तक उन्हें या उनके गांव को कोई नुकसान नहीं हुआ। जिले से कई स्थानों से बाढ़ आने की सूचनाएं आती हैं, लेकिन महानगर के आसपास वाले क्षेत्रों में अरसे कोई नुकसान नहीं हुआ।


नदियों में जो पानी छोड़ा जा रहा है। उससे जलस्तर पर कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है। जिले में बाढ़ जैसी स्थिति नहीं है। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों की निगरानी
की जा रही है। त्रिभुवन, एडीएम वित्त एवं राजस्व

बाढ़ में फसल बह जाने का खतरा, विकल्पों पर विचार कर रहे किसान: नदियों में बढ़ रहे जलस्तर को देखते हुए किसानों का मन आशंकित है। किसानों को फसल बर्बाद होने का खतरा सता रहा है। हर साल नदियां उफनाने पर जिले की जलालाबाद, कलान और तिलहर तहसीलों में गंगा, रामगंगा, बहगुल, गर्रा आदि नदियों के किनारे सैकड़ों बीघा कृषि भूमि जलमग्न होने से खरीफ की फसलें खराब हो जाती हैं। रामगंगा में काफी कृषि भूमि कटान की भेंट चढ़ जाती है।

इन हालातों से जूझने वाले किसानों को उर्द, मूंग, तोरिया आदि वैकल्पिक फसलों की बुआई करने से फसली नुकसान की भरपाई में मदद मिलेगी। बीते वर्ष खरीफ के चालू सीजन में 2.65 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुवाई का लक्ष्य दिया गया था। इनमें धान की विभिन्न किस्मों के लिए 2.07 हेक्टेयर रकबा तय किया गया, लेकिन पिछली जून में पर्याप्त वर्षा नहीं होने से बमुश्किल 60 हजार हेक्टेयर में धान की रोपाई हो सकी थी।

इस साल स्थिति बीते वर्ष की अपेक्षा बेहतर है, लेकिन बहुत अच्छी नहीं है। हाल ही में हुई बारिश के बाद खेतों में नमी बढ़ने पर रोपाई का काम तेज हो चुका है। पिछले साल किसानों ने वर्षा कम होने से जमीन धान के रकबा की भरपाई को करीब 25 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में मूंगफली, मक्का, ज्वार, बाजरा, उड़द, तिल, सोयाबीन आदि की बुवाई की लेकिन बाढ़ और भूमि कटान से फसलों को भारी क्षति पहुंची।

पिछले साल गंगा, रामगंगा और गर्रा के तटवर्ती क्षेत्रों में काफी जमीन बाढ़ में कट गई और करीब हजारों हेक्टेयर फसलें नष्ट हो गईं। अधिकारी मानते हैं कि मानसून सीजन में बाढ़ के हालात पनपने पर फसलें डूबने से खराब हो सकती हैं।

इसलिए ऐसी वैकल्पिक फसलों के बीज की व्यवस्था कर लेनी चाहिए, जिन्हें बाढ़ का प्रकोप समाप्त होने पर बोया जा सके। कृषि वैज्ञानिक और कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उर्द, मूंग, तोरिया, सब्जियां आदि वैकल्पिक फसलें कम समय में तैयार होने के साथ बेहतर उत्पादन भी देती हैं।

विभागीय स्तर से पूरे प्रयास किए जा रहे हैं कि बाढ़ से जितनी फसली हानि हो, उसी अनुपात में अन्य फसलों का उत्पादन लिया जा सके। फसली बीमा एक स्वैच्छिक योजना है और उससे भी नुकसान की भरपाई में मदद मिलती है। जिन गैर ऋणी किसानों की बीमित फसलें बाढ़ से खराब होंगी, उन्हें बीमा कंपनी से नियमानुसार मुआवजा दिलाया जाएगा।- डॉ. सतीश चंद्र पाठक, जिला कृषि अधिकारी

भैंसी नदी फिर सूखी:  भैंसी नदी में आई बाढ़ का पानी अब सूख गया है। जिसके चलते वाहनों का आवागमन शुरू हो गया है। प्रतिदिन की तरह भैंसी नदी में बनाई गई सड़क पर वाहन गुजर रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के ठेकेदार की ओर से बनाए जा रहे पुल का निर्माण कार्य भी बाधित हो गया था, वह भी अब दोबारा सुचारू हो गया है। ऐसे में बाधित कार्य दोबारा से शुरू हो गया है। बता दें कि बीते चार महीने से पुल निर्माण काफी धीमी गति से किया जा रहा है, जिस में तेजी लाने की आवश्यकता बताई जा रही है।

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