अमरोहा : कोट चौराहे से अंग्रेजों को जंग के लिए चुनौती देते थे स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर दास
दो साल से ज्यादा जेल में रहने के बाद कम नहीं हुआ आजादी का जुनुन, देश को स्वतंत्र कराकर ही लिया दम
रामेश्वर दास खंडेलवाल का फाइल फोटो।
सलमान खान, अमृत विचार। उनके सिर पर देश को आजाद कराने का जुनुन सवार था। उन्होंने शहर के कोर्ट चौराहे पर कई बार अंग्रेजों को जंग के लिए चुनौती भी थी। देश में शुरू हुए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भी अमरोहा से उनकी अहम भूमिका रही थी। इसके लिए वह कई बार जेल भी गए थे। जी हां हम बात कर रहे है शहर के स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर दास खंडेलवाल की। जिन्होंने देश की आजादी के लिए दो साल से ज्यादा समय जेल में गुजरा था। देशभक्ति के मौके पर आज भी शहर के लोग उनका गुणगान करते हैं।
शहर के मोहल्ला कोट निवासी रामेश्वर दास खंडेलवाल का जन्म 16 अक्टूबर 1912 को वैश्य परिवार में हुआ था। जब वह बड़े हुए तब देश में अंग्रेजी हुकुमत के जुल्म का दौर था। देश वासियों पर अंग्रेजों का जुल्म देखकर रामेश्वर खंडेलवाल आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उस समय उनकी उम्र 18 साल थी। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेते हुए अंग्रेजी सिपाहियों का जमकर मुकाबला किया। स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर खंडेलवाल शहर के कोट चौराहे पर खड़े होकर अंग्रेजों को ललकारते थे। इसके लिए आठ सितंबर 1930 को उन्हें तीन माह के सश्रम कारावास और 10 रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई गई थी।
सजा पूरी करने के बाद देशप्रेम का जज्बा और ज्यादा बढ़ गया था। उनके देश प्रेम के जज्बे के कारण फिर 30 मई 1932 को 6 माह के कारावास और 50 रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई। 17 नवंबर 1932 को मेरठ की जेल से सजा पूरी करने के बाद छूटकर आए। इसके बाद सत्याग्रह में उन्हें पांच सितंबर 1941 को छह माह के कारावास और 30 रुपए जुर्माने की सजा हुई। 18 दिसंबर 1941 को वह जेल से छूटे और अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण 18 अगस्त 1942 को मुरादाबाद जेल में नजरबंद कर दिए गए।
वहां क्वीट इंडिया का नारा लगाने पर सात अक्टूबर 1942 को एक वर्ष का सश्रम कारावास व 29 अक्टूबर को 15 बेंत और 27 नवम्बर को 15 बेंत और 100 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई। दो बार जेल जाने के बाद भी जब वह बाज नहीं आए तो इनका ट्रांसफर बरेली जेल कर दिया गया। बताया जाता है कि उन्हें लगातार तीन बार में दो साल नौ महीने कैद की सजा हुई। इसके अतिरिक्त 10 कोड़े भी मारे गए। इसके बाद भी उनके सिर से आजादी का जुनुन कम नहीं हुआ। एक दिन उनकी मेहनत रंग लाई और 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। 1984 में 13 नवंबर को उनका निधन हो गया। लेकिन आज भी गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस समेत अन्य देशभक्ति के मौके पर शहर के लोग आजादी के इस मतवाले को नमन करते हैं।
अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन में दादा जी की अहम भूमिका रही थी। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन के विजयी होने पर दादाजी को 14 जनवरी 1944 को रिहा किया गया। इसके बाद 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। जब देश स्वाधीनता की 25वीं वर्षगांठ मना रहा था। उस समय देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वाधीनता सेनानियों को सम्मानित किया था। इसमें हमारे दादा जी शामिल थे। दादा जी को देश के प्रति अमूल्य सेवाओं के लिए भारत सरकार ने ताम्र पत्र तथा 200 प्रति माह पेंशन देकर सम्मानित किया था।-अर्पित खंडेलवाल, पौत्र
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