लखनऊ : भारतीय परंपराओं को समाहित करके ही श्रेष्ठ ज्ञान की परिकल्पना संभव

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Published By Pradumn Upadhyay
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अमृत विचार, लखनऊ । ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए मुकुल कानितकर ने कहा कि भारतीय परंपराओं को समाहित करते हुए ही श्रेष्ठ ज्ञान की परिकल्पना संभव है। बैठक की अध्यक्षता करते हुए विवि कुलपति प्रो. नरेन्द्र बहादुर सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता के बारे में बताया।

प्रो. मनोज दीक्षित कुलपति महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय बीकानेर ने भारतीय ज्ञान के चिन्तकों और ग्रंथो के अनुसंधान के अध्ययन के बारे में बताया। साथ ही कहा की भारतीय होने के नाते, हमारे लिए अपनी ज्ञान विरासत को नजरअंदाज करना और इसे संदेह की नजर से देखना ठीक नहीं है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के समन्वयक डॉ. नीरज शुक्ल ने भारतीय मनीषियों के द्वारा लिखित ग्रंथो के पाठ्यक्रम में शामिल करने को आज की आवश्यकता बताया। बैठक में प्रो. जयशंकर पांडेय, डॉ. ममता शुक्ला और डॉ. शचीन्द्र शेखर आदि मौजूद रहे।

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