मुरादाबाद: डेंगू मरीजों को जरूरत पर नहीं मिल प्लेटलेट्स, निजी का सहारा... भटक रहे तीमारदार
जंबो पैक के नाम पर निजी अस्पताल में लूट, 25-40,000 रुपये ले रहे, अस्पताल के ब्लड बैंक में रेयर ग्रुप का रक्त भी नहीं
मुरादाबाद, अमृत विचार। जिले में बेकाबू हो रहे डेंगू मलेरिया के मरीजों को इलाज देने में भी सरकारी अस्पताल पूरी तरह सफल नहीं हो रहे हैं। मरीजों की जान बचाने के लिए प्लेटलेट्स का इंतजाम करने को तीमारदार भागदौड़ कर रहे हैं। लेकिन मंडल मुख्यालय के जिला अस्पताल में उन्हें प्लेटलेट्स जरूरत पर नहीं मिल रहा है। वहीं जंबो पैक के नाम पर निजी अस्पताल में लूट मची है। उनसे 25-40,000 रुपये प्रति जंबो पैक का वसूला जा रहा है।
डेंगू के नियंत्रण को जागरूकता के नाम पर खानापूर्ति करना और एहतियात के उपाय की रस्म अदायगी मरीजों की जान पर भारी पड़ रही है। गंभीर रूप से बीमार मरीजों का शोषण एक तरफ निजी अस्पताल और झोलाछाप कर रहे हैं तो सरकारी अस्पताल में न तो मरीजों को भर्ती करने के लिए पर्याप्त बेड हैं और न जांच के पूरे इंतजाम। यहां तक की डेंगू के गंभीर मरीजों को प्लेटलेट्स की जरूरत भी जिला अस्पताल का ब्लड बैंक पूरा नहीं कर पा रहा है। अस्पताल में रेयर ग्रुप के रक्त का भंडारण भी नहीं है। यहां सेपरेटर यूनिट में जंबो पैक बनाने की मशीन नहीं है।
जिससे जंबो पैक के नाम पर निजी ब्लड बैंक और निजी अस्पताल हर साल की तरह इस साल भी लूटने में लगे हैं। एक जंबो पैक के लिए मरीज के घर वालों से 25-50,000 रुपये ऐंठ लिए जा रहे हैं। मरता क्या न करता की तर्ज पर तीमारदार रुपये देकर अपने मरीज की जान बचाने में लगे हैं। जिला अस्पताल में किस ग्रुप के रक्त का भंडारण है इसका विवरण भी स्टाॅक बोर्ड पर शनिवार को दिन में दर्ज नहीं मिला।
यहां आए कई मरीज और तीमारदार को जरूरत के ग्रुप का रक्त न होने की बात कह कर लौटाया जा रहा था। कुंदरकी से आई मरीज के परिवार की महिला रेशमा ने बताया कि खून के लिए भटकना पड़ रहा है। अभी नहीं है, बाद में आना, डोनर के बिना गंभीर जरूरत पर भी खून नहीं दिया जा रहा है। एक मरीज ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां पर खून देने के नाम पर मनमानी की जा रही है। कुछ लोगों को इशारे से बुलाकर रक्त दे रहे हैं और दूसरों को खून न होने की बात कहकर लौटा रहे हैं।
जिला अस्पताल की ब्लड बैंक की पैथोलाॅजिस्ट शिल्पा अग्रवाल का कहना है जिस रक्त समूह का खून उपलब्ध है उसे मरीजों को दे रहे हैं। खून लेने वाले मरीज को डोनर लाना होता है और साथ ही जो सरकारी शुल्क है वह देना होता है। थैलेसीमिया के मरीजों को निशुल्क रक्त उपलब्ध कराया जाता है।
रेयर ग्रुप के खून की कमी
सबसे दुर्लभ रक्त प्रकार बी नेगेटिव (बी-वे) है। इसके अलावा एबी नेगेटिव, एबी पॉजिटिव दुर्लभ रक्त समूह में शामिल हैं। जिला अस्पताल की ब्लड बैंक प्रभारी की पैथोलाॅजिस्ट ने बताया कि दुर्लभ रक्त ग्रुप के रक्तदाता कम होते हैं। यह किसी के अपने परिवार के सदस्य में ही मिलने की संभावना अधिक रहती है। इस समूह का रक्तदाता तीन महीने में एक बार रक्तदान कर सकता है। वह बताती हैं कि प्लेटलेट्स अधिकतम पांच दिन सुरक्षित रखी जा सकती हैं।
एक हजार यूनिट भंडारण क्षमता का है रक्तकोष
जिला अस्पताल के रक्तकोष की भंडारण क्षमता 1000 यूनिट रक्त की है। यहां ब्लड सेपरेटर यूनिट भी है। लेकिन इस सेपरेटर यूनिट में जंबो पैक बनाने की सुविधा नहीं है। जिससे मरीजों को निजी ब्लड बैंक का सहारा लेना पड़ता है। जिसके लिए उसे मजबूरी में बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है।
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