मुरादाबाद : अब बंगाल में दुर्गा पूजा की धुनुची नृत्य में जुटीं हसीन जहां
कोलकाता के यादवपुर की दुर्गापूजा में हो रहीं हैं शामिल, नृत्य व उत्सव की तैयारी सोशल मीडिया में चर्चा का केंद्र
आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। बेटी को पिता का प्यार दिलाने, पति संग सुकून के साथ रहने और गुजर-बसर की लड़ाई में कोर्ट-कचहरी की खाक छान रहीं हसीन जहां की जिंदगी कई किरदारों का दस्तावेज है। इन दिनों बंगाल में दुर्गापूजा की धूम है और हसीन जहां भगवती दुर्गा के पूजनोत्सव में जुट गईं हैं। वह बंगाली सहेलियों के साथ मां दुर्गा के आगमन का स्वागत कर चुकीं हैं। अब दशमी को देवी प्रतिमा के सामने धुनुची नृत्य के अभ्यास में पसीना बहा रहीं हैं। इसके मीम्स सोशल मीडिया में जारी हैं।
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर मो.शमी से कानूनी जंग लड़ रहीं हसीन जहां के जीवन का एक स्याह सच यह भी है। वह धार्मिक खाचों में समाज को बांटने वालों को अपने इस किरदार से जवाब भी देतीं हैं। हसीन बेहिसाब पारिवारिक दुश्वारियों के बीच बंगाली दुर्गा पूजा को यादगार बनाने में जुटीं हैं। दूरभाष पर बातचीत में हसीन जहां बंगाल की दुर्गा पूजा को लेकर विस्तार से बताती हैं। हसीन कहती हैं कि आरंभ में माता भगवती के आगमन पर उत्सव होते हैं। बंगाली भाषा में इस मां का आगोमन (आगमन) उत्सव कहते हैं, जिसमें मां का स्वागत किया जाता है। इसके लिए तरह-तरह के नृत्य निर्धारित हैं। धुनुचि नृत्य इसमें सबसे अहम होता है। सिंदूर खेला और नदी के तट पर सूर्य प्रणाम उत्सव मनाया जाता है।
वह कहतीं हैं कि हम कोलकाता के यादवपुर मोहल्ले में रहते हैं, जहां कई बड़े-बड़े पंडाल स्थापित हो गए हैं। हम अपनी हिंदू सहेलियों के साथ इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। हम मजहबी दीवारों से आगे की बात सोचते हैं। हमें मनुष्यता का भाव जीना चाहिए। पड़ोसी हमारे ईद-बकरीद में शामिल होते हैं और हम उनके विश्व प्रसिद्ध बंगाली दुर्गा पूजा का हिस्सा बनते हैं। बंगाल की दुर्गा पूजा दुनिया में प्रसिद्ध है। मैं तमाम मुश्किलों के बीच इसमें अपनी हिस्सेदारी नहीं भूलती हूं। यूपी के जोया, प्रयागराज, लखनऊ, देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य शहरों में अपने हक की लड़ाई के बीच बंगाल लौट आई हूं। दशहरा को यादगार बनाने के लिए धुनुची नृत्य और सिंदूर पूजा की तैयारियों में जुटी हूं। अपना धर्म सिर्फ मोहब्बत है। मेरा मत है, मजहब का मतलब प्यार और आदर होना चाहिए।
यह है धुनुची नृत्य
मुरादाबाद, अमृत विचार: प्रतिष्ठित धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा का एक अभिन्न अंग है और त्योहार का पर्याय बन गया है। यह शाम की दुर्गा आरती के दौरान भक्तों द्वारा एक साथ दो या तीन धुनुची पकड़कर ढाक की धुन पर नाचते हुए किया जाता है। बंगाली परम्परा का हिस्सा यह नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है।
नवदुर्गा, नवरात्रि और दुर्गापूजा नाम चाहे जो पुकारें, लेकिन इन नौ दिनों में जो चहल-पहल और रौनक देश भर में दिखाई देती है, वह माहौल और मन को भक्तिमय बना देती है। इन सबमें सबसे ज्यादा आकर्षक और खूबसूरत परंपरा जहां नजर आती है वह है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा। आंखों के सामने नजर आने लगते हैं भव्य पंडाल। पूजा की पवित्रता, रंगों की छटा, तेजस्वी चेहरों वाली देवियां, सिंदूर खेला, धुनुची नृत्य और भी बहुत कुछ ऐसा दिव्य और आलौकिक है जो शब्दों में न बांधा जा सके। पंडालों की भव्य और विशेष छटा कोलकाता और समूचे पश्चिम बंगाल को नवरात्रि के दौरान खास बनाते हैं। - प्रणव कुमार चक्रवर्ती, सेवानिवृत एसएसई (उत्तर रेलवे) चंद्रनगर
ये भी पढ़ें : मुरादाबाद : पदक जीतकर गृहणियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं रिंकी, अब ओलंपिक के लिए कर रही हैं तैयारी
