पीड़ित को अपमानित करने के उद्देश्य से अपशब्दों का इस्तेमाल एससी/एसटी एक्ट के तहत मान्य अपराध: हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किसी को आरोपी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि पीड़ित के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल उसके एससी-एसटी समुदाय से संबंधित होने के कारण उसे अपमानित करने के इरादे से किया गया हो।
इसके साथ ही कोर्ट ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2) (वीए) के तहत एक मामले में विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट गाजियाबाद द्वारा पारित संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति साधना रानी (ठाकुर) की एकलपीठ ने सीमा भारद्वाज द्वारा दाखिल क्रिमिनल अपील पर सुनवाई करते हुए पारित किया है।
याचिका में संलग्न तथ्यों के अनुसार अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप था कि उसने पीड़िता को गाली दी,जो अपीलकर्ता की मां के लिए हाउस हेल्प के रूप में काम कर रही थी, उसे जातिसूचक शब्द कहे और पिटाई भी की। पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया था कि अपीलकर्ता अपनी मां के साथ झगड़ा करती थी और उसे जबरन गलत दवाई देती थी और वह चाहती थी कि पीड़िता नौकरी छोड़ दे, ताकि वह अपनी मां की संपत्ति पर कब्जा करने की अपनी योजना को क्रियान्वित कर सके।
इसके अलावा अपीलकर्ता ने कुछ अज्ञात व्यक्तियों को भेजा, जिन्होंने पीड़िता और उसकी मां को सड़क पर रोका और उन्हें गालियां और जाति सूचक शब्द के साथ धमकी भी दी थी। अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने बहस के दौरान तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्राथमिकी में दर्ज आरोपों के अनुसार अपीलकर्ता घटना के समय मौके पर मौजूद नहीं थी, इसलिए जो भी घटना हुई, वह अज्ञात व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध था। इसके लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
मुख्य रूप से अधिवक्ता ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता के भाई ने शिकायतकर्ता का इस्तेमाल करके उसे परेशान करने और दबाव बनाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया था ताकि वह विवादग्रस्त होकर संपत्ति का अपना हिस्सा भाई के पक्ष में कर दे।
दोनों पक्षों के द्वारा दिए गए तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आदेश पारित करते समय अपने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया था क्योंकि मौके पर अपीलकर्ता की उपस्थिति कविनगर थाने में दर्ज प्राथमिकी में पहले शिकायतकर्ता द्वारा नहीं लिखाई गई थी। अंत में कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट को 2 महीने के अंदर वर्तमान मामले में एक नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
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