मदरसा बोर्ड फर्जीवाड़े में पूर्व रजिस्ट्रार की भूमिका संदिग्ध... पूरब से लेकर पश्चिम तक फैला है फर्जीवाड़ा करने वालों का नेटवर्क

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Published By Muskan Dixit
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मऊ के मदरसा जामिया मिफ्ताहुल ओलूम निस्वां हुई फर्जी नियुक्ति को दे दी गई वित्तीय सहमति

शासन व मदरसा शिक्षा परिषद की सूची नहीं था शिक्षिका नाम

लखनऊ, अमृत विचार: मदरसा बोर्ड में फर्जीवाड़े का खेल रुकने का नाम नहीं ले रहा है। पूरब से लेकर पश्चिम तक फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह का नेटवर्क फैला है। मऊ के मदरसा जामिया मिफ्ताहुल ओलूम निस्वां की शिक्षिका समीना परवीन ढाई वर्षों से वेतन भुगतान के लिए विभाग के कार्यालयों के चक्कर काट रही हैं। इनकी नियुक्ति एडी बेसिक द्वितीय सूची पर आधारित दिखाई गई। वहीं सूची न तो शासन, न मदरसा शिक्षा परिषद, गोरखपुर मंडल और आजमगढ़ मंडल के अधिकारियों के पास मौजूद सूची में है। इसके बाद भी पूर्व रजिस्ट्रार ने 9 सितंबर को वेतन भुगतान के लिए वित्तीय सहमति प्रदान कर दी है। इस मामले की जांच भी शुरू हो गई है।

मऊ के मदरसा जामिया मिफ्ताहुल ओलूम निस्वां की शिक्षिका श्रीमती समीना परवीन पिछले ढाई वर्षों से वेतन भुगतान के लिए विभागीय दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं। उन्हें आज तक वेतन का भुगतान नहीं मिला। इनकी नियुक्ति जिस एडी बेसिक द्वितीय सूची पर आधारित दिखाई गई है, वही सूची न तो शासन, न मदरसा शिक्षा परिषद, न गोरखपुर मंडल और न ही आज़मगढ़ मंडल के कार्यालय में है। न ही इसे प्रमाणित किया गया है। अभिलेखों की खोज में पूरा मदरसा बोर्ड व शासन उलझा रहा, लेकिन सूची की प्रमाणिकता आज तक नहीं हो सकी। इसके बावजूद तत्कालीन रजिस्ट्रार, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद, जगमोहन सिंह बिष्ट ने 9 सितंबर 2025 को वित्तीय सहमति प्रदान कर दी। यहां तक कि अभिलेखीय सत्यापन, बिना सूची की वैधता की जांच कराये ही पूर्व रजिस्ट्रार ने यह कार्रवाई की।

मूल प्रतियां मिली न मंडलीय कार्यालय से हुई पुष्टि

इस मामले विभागीय पत्राचार किया गया। परिषद कार्यालय को वर्षों पुराने संदिग्ध दस्तावेज मिले। जिनकी न तो मूल प्रतियां मिल रहीं हैं और न ही मंडलीय कार्यालय इसकी पुष्टि कर रहा है। गोरखपुर मंडल के एडी बेसिक ने साफ साफ लिखा कि सूचियों का सत्यापन संभव नहीं है। आज़मगढ़ मंडल के एडी बेसिक ने भी 25 वर्ष पुराने अभिलेखों की अनुपलब्धता का हवाला दिया। उसके बाद भी मदरसा शिक्षा परिषद ने न तो दस्तावेजों की जांच कराई, न ही शासन के 20 जून 2022 के उस निर्देश का अनुपालन किया। जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि सूची की प्रमाणिकता अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर स्थापित कर शासन को उपलब्ध कराई जाए। इसके विपरीत परिषद ने ऐसे अप्रामाणिक और संदिग्ध अभिलेखों के आधार पर वित्तीय सहमति जारी कर दी। जिससे न केवल शासन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ, बल्कि पूरे प्रकरण में परिषद सवालों के घेरे में आ गया। इसी कारण शिक्षिका पिछले कई महीनों से वेतन बिल के साथ कार्यालय में भटक रहीं हैं।

नियुक्ति प्रक्रिया संदिग्ध दस्तावेजों में उलझी

प्रबंधक से लेकर जिला अल्पसंख्यक कल्याण कार्यालय तक के अधिकारी व कर्मचारी ने हाथ खड़े कर दिये हैं। कहा कि सूची की प्रमाणिकता सिद्ध हुए बिना भुगतान संभव नहीं है। दूसरी ओर, मदरसा शिक्षा परिषद के तत्कालीन रजिस्ट्रार जगमोहन सिंह द्वारा नियुक्ति पर दी गई वित्तीय सहमति ने इस मामले को उलझा दिया है। सवाल खड़ा हो रहा है कि बिना दस्तावेज सत्यापन के आखिर यह सहमति दी ही क्यों गई? विभागीय गलती का खामियाजा अब शिक्षिका भुगत रही है। जिसकी नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया अब संदिग्ध दस्तावेजों में उलझी हुई है।

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