काशी तमिल संगमम : मजबूत होगी उत्तर-दक्षिण के बीच संस्कृतियों की डोर, जत्थों में पहुंचेंगे विभिन्न वर्गों के लोग
राजेंद्र कुमार पांडेय/ अयोध्या, अमृत विचार। काशी तमिल संगमम के जरिए उत्तर-दक्षिण की सांस्कृतिक एकता को नया आयाम देने का प्रयास है। संस्कृतियों का यह मिलन इस बार ज्यादा गाढ़ा होगा। अयोध्या के वृहस्पति कुंड में स्थापित दक्षिण के तुलसी कहे जाने वाले स्वामी त्यागराज, पुरंदरदास और अरुणाचल कवि की मूर्तियां इसका बड़ा पड़ाव स्थल बन रही हैं। इससे उत्तर-दक्षिण के लोगों के बीच संस्कृति की डोर मजबूत होगी। अभियान का चौथा चरण शुरू हो गया है। काशी होते हुए तमिलनाडु के विभिन्न वर्गों के लोग यहां पहुंच संस्कृतियों के मिलन के इस महायज्ञ में आहुतियां दे रहे हैं।
केंद्र सरकार के एक भारत-श्रेष्ठ भारत के तहत चार साल पहले शुरू किए गए इस अभियान को उत्तर दक्षिण के बीच रिश्तों की पुष्टि के रूप में देखा जा रहा है। इसके जरिए विचार, सोच और भाषाओं के पीढ़ियों की परंपरा को नए परिवेश में मजबूत करने की कोशिश है। काशी औैर तमिलनाडु के बीच संबंध पौराणिक हैं।
अयोध्या से तमिलनाडु का रिश्ता भी घना है। अयोध्या में जन्मे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने वनवास के दौरान उत्तर और दक्षिण को एक कर दिया था। तमिलनाडु के साथ पूरे दक्षिण में श्री राम पूजे जाते हैं। परंपराएं उनसे जुड़ी हैं। अयोध्या के वृहस्पतिकुंड में दक्षिण के श्रेष्ठ संतों की मूर्तियां इसी कड़ी का हिस्सा हैं।
अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में दक्षिण के प्रदेशों के लोगों का संख्या फिलहाल सबसे ज्यादा बताई जाती है। काशी, प्रयागराज और अयोध्या, तमिलनाडु के साथ पूरे दक्षिण की उत्तर से जुड़ाव के लिए सेतु का काम करेगा। इसीलिए काशी तमिल संगमम को काशी के साथ अयोध्या और प्रयाग के साथ जोड़ा गया है। अयोध्या, काशी और प्रयाग यह तीनों संस्कृतियों के आदान-प्रदान के बड़े केंद्र हैं।
अब सरकार के संरक्षण में इन्हें नए परिवेश में नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की जा रही है। जिलाधिकारी निखिल टी. फुंडे ने कहा कि उत्तर दक्षिण की सांस्कृतिक एकता के लिए काशी तमिल संगमम का चौथा चरण शुरू हो गया। आने वाले अतिथियों का स्वागत किया जा रहा है। श्रीराम मंदिर, हनुमानगढ़ी और वृहस्पति कुंड ले जाया जा रहा है। यह कार्यक्रम 15 दिसंबर तक चलेगा।
सियासी दृष्टि से मोदी का मास्टर स्ट्रोक
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय से शुरू किया गया यह अभियान सियासी दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जाता है। जिसके जरिए उन्होंने उत्तर दक्षिण की संस्कृतियों के मिलन को नया प्लेटफार्म ही नहीं दिया बल्कि राजनीतिक रूप से यूपी के तीन तीर्थों को दक्षिण से जोड़ सियासी लाभ का मार्ग बनाया। पिछले लोकसभा चुनाव में इसका लाभ भी भाजपा को मिला।
