लखनऊ :  सिगरेट और मॉस्किटो क्वाइल फेफड़े को कर रहे खराब, जानें क्या कहते हैं डॉक्टर

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। पूरी दुनिया में लगभग 38 करोड़ 40 लाख लोग सीओपीडी नामक बीमारी से प्रभावित हैं। यह बीमारी वैश्विक स्तर पर मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है। भारत में भी यह बीमारी हर साल बहुत से लोगों को अपनी जद में ले लेती है और उनकी मौत का कारण बनती है। यह जानकारी किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थित पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रोफेसर वेद प्रकाश ने दी। दरअसल, प्रोफेसर वेद प्रकाश विश्व सीओपीडी जागरूकता दिवस से एक दिन पहले पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे।

प्रोफेसर वेद प्रकाश के मुताबिक भारत में करीब 5 करोड़ से अधिक लोग सीओपीडी बीमारी से पीड़ित हैं, भारत में इस बीमारी का प्रमुख कारण धूम्रपान और हवा का प्रदूषण है। हमारे देश में 40 प्रतिशत मामले धूम्रपान के सेवन के कारण होते हैं जबकि दुनिया भर में एक तिहाई से अधिक मामले बिना धूम्रपान के भी होते हैं।

उन्होंने बताया कि सीओपीडी यानी की क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज रोकथाम करने वाली बीमारी है। यह बीमारी सांस फूलने, लगातार खांसी आने और बलगम का कारण बनती है। उन्होंने यह भी कहा कि एक बार यह बीमारी हो गई, तो उसकी रोकथाम ही हो सकती है। ऐसे में जो लोग धूम्रपान करते हैं, उन्हें तत्काल धूम्रपान छोड़ देना चाहिए। सिगरेट पीकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम लोग कर रहे हैं। सिगरेट, बीड़ी, वायू प्रदूषण, चूल्हे का धुंआ यह सभी सीओपीडी होने के कारण है, लेकिन सिगरेट तो वह कारण है, जिसको व्यक्ति स्वयं शौक मे करना शुरू करता है। केवल सिगरेट छोड़कर मौत की तरफ बढ़ती जिंदगी को बचाया जा सकता है।

सीओपीडी बीमारी के लक्षण

- पुरानी खांसी
- सांस लेने में तकलीफ
-घरघराहट
-सीने में जकड़न
-थकान
-बार-बार श्वसन संक्रमण होना
- अचानक से वजन का घटना
-दैनिक गतिविधियां करने में कठिनाई होना


इस अवसर पर रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रो. आरएएस कुशवाहा ने कहा कि सांस से जीवन चलता है इसे बचाने के लिए हमें लगातार प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किशोरावस्था से जो लोग धूम्रपान शुरू करते हैं उन्हें 45 से 50 साल की उम्र में सीओपीडी रोग उभर कर आता है। सीओपीडी बीमारी का रोकथाम हो सकता है लेकिन इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता। यह समय के हिसाब से बढ़ती जाती है। इसके अलावा सीओपीडी बीमारी इंडोर और आउटडोर में होने वाले प्रदूषणों के कारण भी होता है। जिसमें मच्छर भगाने के लिए जलाये जाने वाले मॉस्किटो क्वाइल भी शामिल है। इसकी अपेक्षा मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। इस बीमारी को लेकर शुरू से बचाव करना चाहिए। क्योंकि यह बीमारी मौत का दुनिया भर में तीसरा सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। मरीज जब इस बीमारी से ग्रसित होकर चिकित्सक के पास पहुंचता है तो डॉक्टर के पास कोई रास्ता नहीं बचता। महज दवाओं से मरीज के रोग की रोकथाम ही की जा सकती है।

थोरेसिक सर्जरी के प्रो. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि सीओपीडी बीमारी होने पर सिर्फ रोकथाम की जा सकती है। सबसे अच्छा तरीका यही है कि प्रदूषण से बचा जाये । इस बीमारी में सर्जरी का रोल बहुत कम है। जो मरीज बहुत गंभीर होते हैं उनमें केवल फेफड़ा प्रत्यारोपण ही एक रास्ता है लेकिन वह काफी महंगा और कठिन है। प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण ही है क्योंकि फेफड़ा सीधे तौर पर वातावरण से संपर्क में होता है और उसपर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। प्रत्योरोपण में यही सबसे बड़ी समस्या है। इस अवसर पर प्रो.राजेंद्र प्रसाद समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।

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