ग्लोबल साउथ और भारत

ग्लोबल साउथ और भारत

भारत की कूटनीति में महत्वपूर्ण माने जा रहे ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास और इजरायल के बीच जारी संघर्ष पर शुक्रवार को कहा कि पश्चिम एशिया के घटनाक्रम से नई चुनौतियां उभर रही हैं और अब वक्त आ गया है कि ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को पूरी दुनिया के व्यापक हित में मिलकर आवाज उठानी चाहिए। ‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है,जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है। ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं। इनमें से कई देश 1970 के दशक तक पश्चिमी यूरोपीय औपनिवेश का हिस्सा रह चुके हैं।

ग्लोबल साउथ दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 40 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है। विदेश मंत्री जयशंकर ने भी कहा कि यह समिट दुनिया को हमारी व्यक्तिगत चिंताओं से अवगत कराने और उभरती विश्व व्यवस्था के लिए हमारे साझा हितों को पेश करने के लिहाज से काफी प्रभावशाली हो सकता है। ध्यान रहे जनवरी 2023 में भारत की मेजबानी में पहली बार आयोजित ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। एक आर्थिक और राजनीतिक शक्ति के रूप में ग्लोबल साउथ के उदय ने पारंपरिक शक्ति की गतिशीलता को चुनौती दी है और बदलती वैश्विक व्यवस्था की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

ग्लोबल साउथ ने स्वयं को मजबूत करना जारी रखा है। यह भू-राजनीति को नया आकार देता है। एक नए युग की शुरुआत करता है,जहां अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वास्तव में भारत वैश्विक मंच पर ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुका है। पूरी दुनिया में भारत को ग्लोबल साउथ का नेता माना जाता है। 

ग्लोबल साउथ की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का वैश्विक भू-राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव है। ग्लोबल साउथ के राजनेता वैश्विक मामलों में प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं।

अनुमानों के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्ष 2030 तक चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से तीन ग्लोबल साउथ की होंगी जिनमें भारत अग्रणी होगा। भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों से आर्थिक उथल-पुथल के समय होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में काम करने का आह्वान किया। इसी के चलते प्रधानमंत्री ने विकासशील देशों के विकास का समर्थन करने के लिए आपसी परामर्श,सहयोग,संचार, रचनात्मकता और क्षमता निर्माण को आवश्यक बताया।

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