हादसों से सबक

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
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उत्तराखंड में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में मलबे को हटाकर रास्ता बनाने के कार्य में फिर रुकावट आ गई है। सभी को ऑलवेदर रोड के लिए निर्माणाधीन सुरंग के धंसने से फंसे 41 श्रमिकों की सलामती की चिंता है। सुरंग में ड्रिलिंग का काम फिलहाल रुका हुआ है, जबकि इंदौर से एक और उच्च क्षमता वाली ऑगर मशीन मौके पर पहुंचाई गई है।

इससे पहले, सुरंग में मलबे को भेदने के लिए दिल्ली से एक अमेरिकी ऑगर मशीन सिलक्यारा लाई गई थी। शुक्रवार दोपहर सुरंग में पांचवां पाइप डाले जाने के दौरान तेज आवाज सुनाई दी, जिसके बाद बचाव अभियान रोक दिया गया था। बताया जा रहा है कि सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा है, जिसमें ड्रिलिंग की जानी है। राहत की बात है कि सुरंग में फंसे श्रमिक फिलहाल सुरक्षित हैं।

प्रधानमंत्री कार्यालय राहत एवं बचाव कार्यों की लगातार निगरानी कर रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय में उप सचिव मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि सरकार वैकल्पिक तरीके तलाश रही है और दुनिया भर के विशेषज्ञों से सुझाव और सलाह मांग रही है। सरकार निर्माणाधीन सुरंग के ढहने के बाद उसमें पिछले सात दिनों से फंसे श्रमिकों को मल्टीविटामिन, अवसादरोधी दवाओं के साथ ही सूखे मेवे भेज रही है।

उधर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को कहा कि फंसे श्रमिकों को बाहर निकालना सबसे पहली प्राथमिकता है। निश्चित ही दुर्घटना के बाद उत्तराखंड व केंद्र सरकार ने जो सक्रियता दिखाई है,  उसका स्वागत किया जाना चाहिए। परंतु बड़ा सवाल है कि क्या यह दुर्घटना निर्माण कार्य में लगी कंपनी की कार्यकुशलता पर प्रश्नचिन्ह नहीं है? हिमालयी पर्वत शृंखला में संवेदनशील उत्तराखंड के पहाड़ों में बड़ी विकास परियोजनाओं का निर्माण क्या तार्किक है?

जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम के मिजाज में आए बदलाव के कारण पहाड़ों में कई तरह के नए संकट पैदा हो रहे हैं। जो बड़े संकटों का कारण बन जाते हैं। कम समय में तेज बारिश होने से भू-स्खलन की घटनाओं में तेजी आई है। नीति निर्माताओं को बड़ी विकास योजनाओं को अमलीजामा पहनाने से पहले इन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें आग लगने पर कुआं खोदने की प्रवृत्ति से मुक्त होना होगा।

उत्तराखंड में विकास को नया स्वरूप दिया जाना चाहिए। हादसों से सबक लेकर यहां की जलवायु और भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर ही विकास की योजनाएं बनाई जानी चाहिएं। ध्यान रहे पारिस्थितिक संतुलन की अनदेखी की जाती रही तो इसका खामियाजा हम सभी को लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा।