Allahabad High Court: नियमित तरीके से सिविल मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए याचिका स्वीकार्य नहीं

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक सिविल वाद की सुनवाई करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि नियमित तरीके से सिविल मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए याचिका दाखिल नहीं की जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत मुकदमे में शीघ्र निपटान की राहत देने से बचना चाहिए। इस तरह के आदेशों को बहुत सावधानीपूर्वक पारित करने की आवश्यकता है अन्यथा वे अधीनस्थ अदालतों पर मामलों के शीघ्र निपटारे के अनुरोधों का बोझ डाल देंगे और जो वादी हाईकोर्ट जाने का जोखिम नहीं उठा सकते, वह ऐसे आदेशों का लाभ नहीं उठा पाएंगे।

इस प्रकार के निर्देशों का प्रयोग तभी किया जाना उचित होगा, जब कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश जानबूझकर किसी अप्रत्यक्ष उद्देश्य से मुकदमे का निपटारा नहीं करना चाह रहे हैं या देरी से घोर अन्याय होगा। इसी न्यायालय के पूर्व आदेशों पर भरोसा करते हुए न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकलपीठ ने उक्त आदेश श्रीमती शारदा सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार याची के दिवंगत पति कर्नल सूर्यपाल सिंह ने 24 जून 2016 की पंजीकृत वसीयत के तहत उनके लिए एक घर छोड़ा है।

याची (पत्नी) ने अपनी संपत्ति में विपक्षी (बच्चों) को हस्तक्षेप करने से रोकने और बेटे यशपाल को संपत्ति से बेदखल करने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए मथुरा जिला अदालत में मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में बहस पूरी हो चुकी है, लेकिन फैसला नहीं हो पा रहा है। अतः याची ने मामले के शीघ्र निपटारे के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याची एक वरिष्ठ नागरिक है और उम्र संबंधी कई बीमारियों से ग्रस्त है।

अधिवक्ता ने आगे बताया कि कार्यवाही बहुत धीमी गति से चल रही है, जिसमें याची की उम्र को देखते हुए तेजी लाने की आवश्यकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि निर्धारित अवधि के भीतर अधीनस्थ अदालतों को किसी भी मुकदमे का फैसला करने का निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। वर्तमान मामले में कोर्ट राहत देने की इच्छुक नहीं है, लेकिन याची की उम्र को देखते हुए शीघ्र निपटारे की राहत दी जा सकती है। अंत में कोर्ट ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन), मथुरा को निर्देश दिया कि मामले की अगली सुनवाई पर या उचित समय के भीतर आवेदन पर विचार कर उचित आदेश पारित किया जाए।

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