आजादी के सात दशक बाद भी मेंहदावल में चलती है जमींदारी प्रथा, कौन जनप्रतिनिधि इसे कराएगा समाप्त, पूछती है जनता...
अमृत विचार विशेष/ गोरखनाथ मिश्र, संतकबीरनगर। मेंहदावल नगर पंचायत की स्थापना हुए आज करीब सौ साल से ऊपर हो गया है। आज के मेंहदावल को शासन द्वारा तमाम सुविधाओं से आच्छादित भी किया गया है। फिर भी इस नगर को जमींदारी प्रथा से मुक्ति दिलाने की दिशा में राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी तो हर जनप्रतिनिधि में देखने को मिलती आ रही है। आजादी के 70 साल से अधिक बीत जाने के बाद भी नगर में जमींदारों को बिना नजराने के कोई भी कार्य करवाना नामुमकिन है। देश आजाद होने के बाद भारतीय संविधान में जमींदारी को खत्म करने का प्रावधान किया गया। जमींदारी विनाश अधिनियम द्वारा जहां सभी जगहों पर जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया वहीं मेंहदावल नगर में जमींदारी प्रथा का जिंदा रहना एक तरह से गुलामी की प्रथा को जीवंत रखा है।
एक तरफ हजारों मेंहदावल नगरवासी जहां नगर पंचायत में हाउस टैक्स आदि सभी करों को जमा करते हैं वहीं इस बाबत भवन निर्माण, खिड़की खोलने आदि कार्य करवाने में जमींदार भी नगर वासियों से अपना नजराना वसूलते हैं। जिससे मेंहदावल की जनता पर दोहरे कर की मार झेलनी पड़ती है। शासन ने जहां मेंहदावल को थाना, तहसील, बस स्टेशन, ब्लॉक आदि अनेकों जरूरी सुविधाओं से नवाजा है, तो वहीं मेंहदावल नगर वासी जमींदारी जैसे काले कानून से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहा हैं यह सवाल हर नागरिक की जुबान पर है। नागरिकों का सवाल है कि क्या आज़ाद भारत मे मेंहदावल नगर को जमींदारी प्रथा से मुक्ति मिल पाएगी, जो ब्रिटिश कालीन प्रथा की अवधारणा को साबित कर रहा है। जिससे नगर आज भी गुलामी की दास्तान को बयां कर रहा है।
भारत देश को आज़ादी मिलने के बाद लोकतांत्रिक देश मे एक तरह से यह नगर जमींदारी प्रथा के दंश को सह रहा है। प्रदेश में आज तक जितनी भी सरकारें आईं चाहे वह सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा किसी ने भी पूरी इच्छाशक्ति से इस प्रथा को समाप्त करने की जहमत नही उठाया। भारतीय जनता पार्टी के पूर्ण बहुमत की सरकार के पूर्व विधायक रहे राकेश सिंह बघेल द्वारा शासन को जमींदारी की प्रथा को समाप्ति हेतु शासन को एक पत्र के द्वारा वर्ष 2017 में शासन को अवगत भी कराया गया था। लेकिन आज चार साल बाद भी भाजपा सरकार द्वारा नगर को जमींदारी से मुक्त करने के लिए कोई भी सार्थक कदम नही उठाया गया। विधायक द्वारा की गई पहल से नागरिकों को जमींदारी प्रथा से मुक्ति की आस जगी थी लेकिन सिर्फ मायूसी ही हाथ लगी। भाजपा विधायक द्वारा जमींदारी प्रथा की समाप्ति हेतु दिये गए पत्र को कब तक संज्ञान में लेकर कदम उठाया जाएगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
कुछ माह बाद लोकसभा के चुनाव का मतदान भी होना है। लेकिन इस बार भी किसी प्रत्याशी की नजर में जमींदारी प्रथा को समाप्त कराने का कोई भी वक्तव्य आएगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा। लोगों का सवाल है कि अब आने वाले लोकसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद नए जन प्रतिनिधि द्वारा कोई कदम उठाया जाएगा या मेंहदावल नगरवासियों को जमींदारी का दंश झेलने की मजबूरी बनी रहेगी। देश मे एक मजबूत सरकार के बाबत विज्ञापन चलता ही रहता है, जबकि मेंहदावल नगर की जमींदारी को समाप्त कर नगरवासियों की मजबूरी कब खत्म की जाएगी यह तो भविष्य के गर्भ में है। नगरवासी चुनाव के बाद नई सरकार के इंतजार में हैं क्योंकि हर बार इसी आस में वोट देते हैं कि कोई तो इस पर गम्भीरता से पहल करेगा। इसी जमींदारी प्रथा के कारण मेंहदावल में अनेकों विकास कार्य अपने अंजाम तक नहीं पहुच पा रहे हैं। इसी कड़ी में मेंहदावल नगर के ठाकुर द्वारा मंदिर के पोखरे का पुनर्निर्माण में एक शिरा पिछले कई साल से अटका पड़ा हुआ है। जिससे मुहल्ले के तमाम निवासियों में रोष ब्याप्त है। मंदिर के पोखरे के सुंदरीकरण जैसे धर्मार्थ कार्य भी जमींदारी प्रथा से प्रभावित है।
क्या कहते हैं जिलाधिकारी
संतकबीरनगर। इस बड़े मामले को लेकर जिलाधिकारी के सीयूजी नंबर पर डायल किया गया तो उनका फोन मुख्य विकास अधिकारी संत कुमार ने रिसीव किया। उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी महोदय छुट्टी पर हैं। उन्होंने बताया कि जब सारे देश से जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो गया तो नगर पंचायत मेंहदावल अछूता कैसे रह गया यह समझ से परे है। अगर वहां के जमींदार वैधानिक तरीके से टैक्स वसूल रहे हैं तो इसका पता लगाया जाएगा कि यह प्रथा अबतक यहां शेष कैसे है। लेकिन अगर अवैध तरीके से गुंडा टैक्स के रूप में वसूली की बात आएगी तो जिम्मेदार बख्शे नहीं जाएंगे।
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