खटीमा: सौ साल से अधिक पुराना है बाबा भारमल मंदिर का इतिहास

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Published By Bhupesh Kanaujia
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ओम प्रकाश मौर्य, खटीमा, अमृत विचार। बाबा भारामल मंदिर का इतिहास 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है। लोगों का मानना है कि जो भी यहां पहुंचकर  सच्चे मन से अपनी मन्नतें मांगता है वह बाबा अवश्य पूरी करते हैं। लोगों की आस्था और विश्वास के चलते बरसों से इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही गई है।

बताया जाता है कि अंग्रेजों के जमाने में करीब सन 1925 में जब शारदा नहर (जो आज सुखी नहर के नाम से जानी जाती है) की खुदाई हो रही थी। उसी समय बाबा भारामल की समाधि नहर के रास्ते में आ गई। इसी स्थान पर नहर पर पुल निर्माण की भी योजना थी और समाधि को हटाकर पुल का निर्माण कराया गया लेकिन कुछ ही समय बाद यह पुल धराशायी हो गया। यह भी बताया जाता है कि अंग्रेजों द्वारा इस स्थान पर पुनः पुल निर्माण कराया गया वह भी नहीं टिक सका।

इसके बाद पुल निर्माण करने वाली संस्था द्वारा बाबा भारामल की समाधि को पुल से करीब डेढ़ सौ मीटर दूर स्थापित कराई गई और पुल निर्माण हुआ। जो काफी समय तक चला हालांकि वह इस समय भी टूट गया है। इस समय से लोगों में बाबा भारामल की शक्ति का संचार हुआ और बिहड़ और घने जंगल के बावजूद वहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर पूजा अर्चना करने हैं। बाबा भारामल की समाधि पर गुड की भेली और चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

यहां आने वाले श्रद्धालु जनों का मानना है कि यहां मांगी जाने वाली उनकी मन्नतें सदा पूरी होती हैं। मन्नतें पूरी होने के बाद श्रद्धालु एक बार पुनः यहां पहुंचकर पूजा अर्चना कर और स्वयं को धन्य महसूस करते हैं। नहर निर्माण के समय रास्ते में बनी बाबा भारामल की समाधि कब बनी इसका कोई पता नहीं है।

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