लखनऊ : राम भक्तों की मौत ने बदल दी जिन्दगी, सेवाभाव की भावना मन में लिए अवधेश नारायण ने त्याग दिया घर

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Published By Virendra Pandey
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समाज को परिवार मान राजधानी के अस्पतालों में मरीजों की आज भी करते हैं सेवा

गरीब मरीज और उनके परिजनों को मुफ्त भोजन और इलाज के लिए चला रखा है अभियान

लखनऊ, अमृत विचार। 2 नवंबर साल 1990 का दिन लाखों लोगों की जिंदगी में बदलाव का गवाह बना। इस दिन जहां कई लोगों ने अपना जीवन खो दिया। वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें जिंदगी जीने का असल मकसद मिल गया। उन्हीं में से एक अवधेश नारायण भी रहे। जिन्होंने अपना घर परिवार छोड़कर राष्ट्र और समाज के लिए जीवन देने का मन बना लिया। करीब 33 साल पहले शुरू हुआ वह सिलसिला आज भी जारी है। 

साल 1990 में 28 अक्टूबर के दिन प्रयागराज स्थित अलोपी बाग में एक सभा आयोजित हुई थी। जिसमें बहुत से लोग पहुंचे थे यह सभा अयोध्या में कारसेवा के लिए आयोजित की गई थी। इसी सभा में कौशांबी के सिराथू से चलकर अवधेश नारायण भी पहुंचे थे। वहां से पैदल चलकर हजारो कारसेवक 30 अक्टूबर की शाम सरयू नदी के तट पर पहुंचे और वहां से अयोध्या में प्रवेश किया, लेकिन पुलिस की कड़ी सुरक्षा के चलते वह सभी विवादित ढांचे तक नहीं पहुंच सके। बताया जा रहा है कि दो दिनों तक सबकुछ शांत था, लेकिन 2 नवंबर को विवादित ढांचे तक बहुत से कारसेवक पहुंच ही गये। जिसपर पुलिस आक्रोशित हो उठी और कारसेवकों पर गोली और लाठी से हमला बोल दिया। जिसके चलते राम कुमार कोठारी और शरद कोठारी की मौत हो गई। इस हमले में बहुत से कारसेवकों को अपनी जान गवांनी पड़ी।

कहा तो यहां तक जा रहा है कि बहुत से घायल कारसेवकों को पुलिस ने पैर में बालू की बोरियां बांधकर सरयू में फेंक दिया। वहीं सरयू किनारे दाह संस्कार के लिए जुटे कारसेवकों पर भी पुलिस ने हमला बोला। जिससे बचने के लिए बहुत से कारसेवकों ने नदी में छलांग लगा दी। इन घटनाओं को देखने के बाद अवधेश नारायण के मन में राष्ट्र और समाज की सेवा करने की भावना घर कर गई और उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगाने का मन बना लिया। इसके बाद अवधेश नारायण ने संघ में स्वयं सेवक बनकर लंबे समय तक काम किया। साल 2010 के बाद राजधानी के अस्पतालों में मरीजों की समस्या देख यहीं के होकर रह गये। अवधेश नारायण ने धनवंतरि सेवा संस्थान की स्थापना की। जिसके जरिये समाज की मदद से मरीजों और उनके परिजनों को अस्पताल में सहायता करने लगे। व्हील चेयर, स्ट्रेचर, ठहरने और भोजन की व्यवस्था के लिए राजधानी के लगभग सभी अस्पतालों में धनवंतरि केंद्र की स्थापना की। जिससे आज केजीएमयू, लोहिया, बलरामपुर, सिविल समेत अन्य अस्पतालों में पहुंचने वाले सैंकड़ों मरीजों को लाभ मिल रहा है। हालांकि इस दौरान अवधेश नारायण को भारी संघर्ष करना पड़ा, उनका विरोध भी हुआ,लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा। 

भक्ति ज्वार को लाठी और गोली भी नहीं रोक पाई

अवधेश नारायण ने बातचीत के दौरान बताया कि जब वह आलोपी बाग सभा में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे। तब स्नातक कर रहे थे। यह प्रभू श्रीराम के प्रति मन में अगाध आस्था ही थी कि दो दिनों तक लगातार खेतों के रास्ते अयोध्या पहुंचने और वहां पर मौजूदा स्थित को देखकर मन भयभीत नहीं हुआ बल्कि और मजबूत हुआ। उन्होंने बताया कि जब कोठारी बंधुओं को गोली मारी गई थी, उस समय हम पांच लोग भी पास के ही एक स्थान पर छुपे हुये थे। पुलिस हम लोगों को बाहर निकालने के लिए लाठियों से मार रही थी, लेकिन हमलोग वहीं डटे रहे। उन्होंने बताया कि कोठारी बंधुओं के अलावा कई अन्य कारसेवकों की गोली लगने से मौत हो गई थी। उनके शव दिगंबर आखाड़े में रखे हुये थे। उस दौरान लोगों की जुबां पर सिर्फ जय श्रीराम और बंदेमातरम् का ही नारा सुनाई पड़ रहा था। इन सब को देखने पर एक ही बात मन में आ रही थी कि यह गोली मुझे क्यों नहीं लगी। यही वह समय था जब मन में ठान लिया कि परिवार तो अन्य जन्मों में हो जायेगा, लेकिन राष्ट्र सेवा का मौंका केवल इसी जन्म में मिला है। इसलिए घर छोड़कर पूरे समाज को अपना परिवार मान लिया।

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