पद्मश्री डॉ. नित्यानंद के साथ बिताये पल को डॉ. जीएन सिंह ने किया याद, कहा- किसी और मुल्क में होते तो मिलता नोबेल

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिकित्सा वैज्ञानिक और भारतीय फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री के भीष्म पितामह के रूप में प्रख्यात रहे पद्मश्री प्रोफेसर नित्यानंद के लंबी आयु की प्रार्थना कर रहे लोगों को जैसे ही शनिवार सुबह उनके निधन की खबर लगी चारों ओर शोक की लहर दौड़ गई। हर एक की जुबां पर डॉ. नित्यानंद की सरलता और उनके मेडिसिन के क्षेत्र में किये गये खोज, अनुसंधान के कार्यों की ही बात थी। इस समय उनका पार्थिव शरीर उनके घर पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। जहां उन्हें श्रद्धांजिल देने के लिए प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक समेत राजनीति और चिकित्सा क्षेत्र के बड़े- बड़े लोग पहुंच रहे हैं।

इस मौके पर मुख्यमंत्री के सलाहकार और भारत सरकार के पूर्व औषधि महानियंत्रक डॉ. जीएन सिंह भी पहुंचे और डॉ. नित्यानंद के पार्थिव शरीर को नमन कर उन्हें श्रद्धांजिल दी। मुख्यमंत्री के सलाहकार और भारत सरकार के पूर्व औषधि महानियंत्रक डॉ. जीएन सिंह ने डॉ. नित्यानंद साथ बिताये पलों को याद करते हुये कहा कि यदि डॉ. नित्यानंद किसी और देश में होते तो उनके कार्यों के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलता। उन्होंने तो यहां तक कहा कि देश बहुत ही भाग्यशाली है जो नित्यानंद जी जैसा महान वैज्ञानिक पैदा हुआ। इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि डॉ. नित्यानंद हमेशा उन्हें गुस्सा कम करने की सलाह देते थे।

नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत करने पर हो रहा था विचार

पद्मश्री डॉक्टर नित्यानंद, भारतीय दवा उद्योग की एकमात्र जननी संस्थान, विश्व विख्यात केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान - सीडीआरआई - Central Drug Research Institute, India के संस्थापक निदेशकों में से रहे हैं।

वैज्ञानिक समुदाय में अब तक की ईजाद इकलौती नॉन हार्मोनल, नों स्टेरॉयडल कांट्रेसेप्टिव पिल (गैर हार्मोनल, गैर स्टेरॉइडल गर्भनिरोधक गोली), सहेली, जिसे एक समय में नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत करने तक के लिए विचार किया जा रहा था, उसके जनक भी प्रोफेसर नित्यानंद ही थे। वर्तमान में यह औषधि छाया के नाम से राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम (National family planning program) में भी शमिल रहे है।

कम मूल्य पर दवा उपलब्ध कराने में अहम रहा योगदान

औषध अनुसंधान संस्थान (सी.डीआरआई) लखनऊ के सेवानिवृत्त निदेशक डॉ. नित्यानन्द औषध खोज एवं विकास अनुसंधान के क्षेत्र में एक जानी-मानी हस्ती थे। उन्होंने सीडीआरआई को औषध अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व स्तर का केन्द्र बनाने में नेतृत्व प्रदान किया है। औषध निर्माण विज्ञानों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने तथा आम आदमी को कम मूल्यों पर औषधियां उपलब्ध कराने में समर्थ होने के लिए भारत औषध उद्योग को आत्म निर्भर बनाने के अपने प्रयास के लिए व्यापक स्तर पर जाने जाते हैं।

डॉ. नित्यानंद

डॉ. नित्यानन्द का जन्म एक जनवरी 1925 को हुआ। उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहोर से बीएससी (1943), सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से रसायन शास्त्र में एमएससी (1945), यूडीसीटी, बम्बई से रसायन शास्त्र में पीएचडी (1948) तथा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी यूके से न्यूक्लीक एसिड के क्षेत्र में दूसरी पीएच. डी. (1950) की डिग्री प्राप्त की। आपने 1951 में सीडीआरआई के उदघाट्न के तुरन्त बाद इसमें कार्य भार ग्रहण कर लिया और 1984 में इसके निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए। वह 1958 से 1959 तक बोस्टन में हार्वर्ड मेंडिकल स्कूल की रॉकफैलर फाउन्डेशन फैलोशिप पर संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे।

उन्होंने सीडीआरआई में मेडिसनल कैमिस्ट्री रिसर्च में एक सक्रिय स्कूल का निर्माण किया जिसने नई औषधियों की डिजायन, खोज और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. नित्यानन्द के अनुसंधान से केन्टक्रोयन (सहेली), एक ओरल कन्ट्रेसेप्टिव; सेन्टब्यूक्रीडाइन, एक लोकल एनस्थेटिक तथा गुगलिप एक लिपिड लॉवरिंग औषध जैसी अनेक नई औषधियों की खोज हुई। इतना ही नहीं लगभग 400 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, आर्ट इन ऑर्गेनिक सिन्थैसिस पर संयुक्त रूप से दो पुस्तकें लिखी हैं, मानक पाठ्य पुस्तकों के लिए लगभग 30 अध्याय लिखे हैं और परिजीवियों (पैरासाइट्स) से होने वाली बीमारियों पर दो पुस्तकों का सम्पादन किया है। 

डॉ. नित्यानन्द को लगभग 150 राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पेटेन्ट प्रदान किए गए हैं। इसी योगदान के चलते भारत सरकार की तरफ से उन्हे साल 2012 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

यह पुरस्कार मिले

पद्मश्री डॉ. नित्यानंद भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, नई दिल्ली राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इलाहाबाद तथा भारतीय विज्ञान अकादमी, बंगलौर के निर्वाचित फैलो हैं। इन्हें अमृत मोदी अनुसंधान पुरस्कार (1971), के. जी. नायक स्वर्ण पदक, बड़ोदा विश्वविद्यालय (1972), विश्वकर्मा पदक, आई एन एस ए (1982), जे. वी. चटर्जी स्वर्ण पदक, ट्रॉपीकल स्कूल ऑफ मेडिसिन, कलकता (1982), द आचार्य पी. ई. रे (1972) और सर जे.सी. घोष (1976), मेडल्स, इण्डियन कैमिकल सोसायटी, एमपी, यू. पी. सी. एस. टी. का विज्ञान गौरव पुरस्कर (2000) प्रदान किए गए हैं। डॉ. नित्यानंद भारत सरकार के मंत्रिमंडल की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य (1981-83) रहे।

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