प्रदेश में 2.19 लाख गर्भवतियों में उच्च जोखिम की हुई पुष्टिः गंभीर एनीमिया से लेकर डायबिटीज तक... यूपी में अब कोई गर्भवती अकेली नहीं लड़ेगी

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Published By Muskan Dixit
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मातृ-शिशु दर को कम करने के लिए 7 महीने तक चलाए गए अभियान में 25.29 लाख गर्भवतियों की हुई थी जांच

लखनऊ, अमृत विचार : प्रदेश में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए) मातृ स्वास्थ्य सुधार का प्रभावी मॉडल बनकर उभरा है। अप्रैल से नवंबर 2025 के बीच राज्य में दूसरी और तीसरी तिमाही की 25.29 लाख गर्भवतियों की प्रसव पूर्व जांच की गई, जिनमें से 2.19 लाख महिलाओं को उच्च जोखिम गर्भावस्था के रूप में चिह्नित कर विशेष निगरानी से जोड़ा गया। गुणवत्तापूर्ण जांच, डिजिटल मातृत्व ट्रैकिंग, निजी चिकित्सकों की सहभागिता और नियमित फॉलोअप ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर घटाने के प्रयासों को नई गति दी है।

महानिदेशक परिवार कल्याण डॉ. पवन सिंह अरुणा के अनुसार, अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर गर्भवती महिला को दूसरी या तीसरी तिमाही में कम से कम एक बार प्रशिक्षित स्त्री रोग विशेषज्ञ या एमबीबीएस चिकित्सक से जांच मिले और आगे सतत फॉलोअप जारी रहे। उन्होंने बताया कि प्रसवपूर्व जांच, जोखिम पहचान, रेफरल और पोषण-सलाह के संयुक्त प्रयासों से प्रदेश में सुरक्षित प्रसव और मातृ स्वास्थ्य के संकेतक लगातार बेहतर हुए हैं।

अभियान की बदौलत प्रदेश के सभी 75 जिलों में मातृत्व सेवाओं की पहुंच मजबूत हुई है। पीएमएसएमए में अब तक 1,124 निजी एमबीबीएस चिकित्सक स्वेच्छा से जुड़ चुके हैं। निजी क्षेत्र की सहभागिता के मामले में उत्तर प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है, जबकि महाराष्ट्र पहले स्थान पर है।

राज्य सरकार ने नवाचार के रूप में पीएमएसएमए और पीएमएसएमए प्लस दिवस को हर माह 1, 9, 16 और 24 तारीख को आयोजित करना शुरू किया है, जिससे महिलाओं को महीने में चार बार जांच का अवसर मिल रहा है। इससे उच्च जोखिम गर्भावस्थाओं की पहचान और फॉलोअप में उल्लेखनीय तेजी आई है। डिजिटल मातृत्व ट्रैकिंग, मातृत्व हेल्पलाइन और आशा–एएनएम को उन्नत प्रशिक्षण जैसी पहलों ने भी अभियान की प्रभावशीलता बढ़ाई है।

ये स्थितियां हैं उच्च जोखिम

अभियान के तहत गंभीर एनीमिया, अधिक या कम वजन, अत्यधिक कम कद, असामान्य स्राव, उच्च या निम्न आयु में गर्भधारण जैसी स्थितियों को उच्च जोखिम मानकर चिन्हित किया जाता है। वहीं गर्भकालीन डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, प्री-एक्लेम्प्शिया, टीबी, एचआईवी, मलेरिया और किडनी रोग जैसी चिकित्सकीय स्थितियों की भी विशेष निगरानी की जाती है।

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