Kanpur News: फेफड़े की टीबी से दिल की बीमारी... मरीजों की फूलती सांस, पेसमेकर से भी नहीं मिल रहा आराम
कानपुर में फेफड़े की टीबी से दिल की बीमारी।
कानपुर में फेफड़े की टीबी से दिल की बीमारी। दिल की मांशपेशियों में नसों के गुच्छे बनने से थोड़ा सा चलने पर मरीजों की सांस फूलती थी।
कानपुर, अमृत विचार। लंग्स (फेफड़े) में होने वाली टीबी दिल को भी कमजोर करती है। ऐसे में टीबी रोगियों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। कॉर्डियोलॉजी में हुए एक शोध में फेफड़े की टीबी से पीड़ित 35 रोगियों के दिल की तीनों दीवारों की मांसपेशियों पर नसों के गुच्छे जैसा उभार मिला, इसके कारण उन्हें चलने-फिरने में सांस फूलने की दिकक्त हो रही थी।
रावतपुर स्थित कार्डियोलॉजी संस्थान में अक्सर मरीज सांस फूलने या थोड़ा सा चलने-फिरने पर थकान होने की समस्या लेकर आते हैं। इनमे से कुछ मरीज दवा से ठीक नहीं हो पाते हैं और उनका इलाज सालों चलता है। इसे देखते हुए संस्थान के एसोसिएट प्रो.संतोष कुमार सिन्हा ने दो साल में 35 मरीजों पर शोध किया।
इन 35 मरीजों की ईसीजी, ईको, टीएमटी आदि जांच की गई। जांच में दिल की पंपिंग 35 प्रतिशत ही मिली, जो दिल के लिए काफी नुकसानदेह है। मरीजों को आराम मिल सके और वह जल्दी ठीक हो सकें, इसके लिए शोध टीम ने मरीजों को पेसमेकर या इंप्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफब्रीलिएटर लगाकर दिल की पंपिंग बढ़ा दी।
इससे मरीज ठीक होकर घर चले गए, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें फिर से पुरानी दिक्कत होने लगी। इस पर इन मरीजों की एंजियोग्राफी, एक्सरे व अल्ट्रासाउंड जांच की गई, लेकिन समस्या का पता नहीं चल सका। ऐसे में शोध टीम ने 30 से 40 साल उम्र के 35 मरीज चिह्नित करके उनकी लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट में कार्डियक एमआरआई कराई।
इसमें दिल की तीनों दीवारों की मांसपेशियों पर नसों के गुच्छे जैसा उभार नजर आया। इस कारण मांसपेशियां कमजोर होने से दिल की पंपिंग प्रभावित होने का पता चला। मरीजों में सारकाइडोसिस (कोशिकाओं की सूजन) की स्थिति देखकर दवाएं दी गईं तो नसों के गुच्छे गलने लगे।
शोध में सामने आया है कि फेफड़े की टीबी दिल को भी बीमार बना रही है। जरा सा चलने पर ऐसे मरीजों की सांस फूलने लगती है और थकान महसूस होती है। ये परेशानी फेफड़े में टीबी की वजह से होती है। मर्ज पकड़ में आने के बाद इलाज करने पर 26 मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं। बाकी में भी सुधार है। शोध अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशन के लिए भेजा जा रहा है।- संतोष कुमार सिन्हा, एसोसिएट प्रोफेसर, कॉर्डियोलाजी संस्थान
