शाहजहांपुर: राजनीति अंधी होती है, इसलिए बिना धर्म के नहीं चल सकती- शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती

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Published By Moazzam Beg
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अजय अवस्थी, शाहजहांपुर, अमृत विचार। शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज ज्योतिर्पीठाधीश्वर, बद्रिका आश्रम का मानना है कि राजनीति धर्मानुसार ही चलनी चाहिए। स्वतंत्र राजनीति का कोई अस्तित्व नहीं होता है। एसएस कॉलेज के मुमुक्षु महोत्सव में पधारे शंकराचार्य ने मुमुक्षु आश्रम के अतिथि गृह में अमृत विचार से खास बातचीत की।

शंकराचार्य ने कहा कि सही मायने में देखा जाए तो राजनीति अंधी और धर्म लंगड़ा है। अंधी होने के कारण ही राजनीति को धर्म रास्ता दिखाता है। उन्होंने कहा कि राजनीति को मार्ग दिखाने के लिए धर्म का होना बहुत आवश्यक है। 

एक सवाल के जवाब में शंकराचार्य ने कहा कि राजनीति में यदि धर्म नहीं होगा, यानि संत-महात्मा नहीं होंगे, तो राजनीति चल ही नहीं पाएगी। चूंकि धर्म लंगड़ा होता है, इसलिए वह राजनीति के कंधे पर सवार रहता है और राजनीति को रास्ता दिखाता रहता है। बिना धर्म के राजनीति चल ही नहीं सकती। जिस प्रकार अंधा व्यक्ति स्वयं नहीं चल सकता, उसे रास्ता दिखाने वाला चाहिए होता है, वैसे ही राजनीति चल सकती है।

 एक अन्य सवाल के जवाब में शंकराचार्य ने कहा कि मुख्यमंत्री की परंपरा में धर्म शामिल है। संत दिग्विजय नाथ, संत अवैद्यनाथ के क्रम में योगी आदित्यनाथ धर्म के मार्ग पर चल कर राजनीति को दिशा दे रहे हैं। जो सभी संत राजनीति में आ चुके हैं और राजनीति को रास्ता दिखा रहे हैं, वह अपना कर्तव्य भली प्रकार निभा रहे हैं। ऐसे लोगों के आने से ही राजनीति में सुधार भी हो रहा है। 

 रामलला प्राण प्रतिष्ठा के सवाल पर शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद ने कहा कि प्रभु राम की प्राण प्रतिष्ठा सर्वसिद्धि और अमृत योग में हुई है, इसमें किसी प्रकार की कोई बुराई नहीं है। जो लोग इस पर आपत्ति उठा रहे थे, वह अज्ञानी हैं, उन्हें ज्योतिष आदि का ज्ञान ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो यह समझना होगा कि रामलला अपने राज महल में प्रबिष्ट हुए हैं, अपने घर में ही उनकी प्राण प्रतिष्ठा उचित समय और गृह-नक्षत्र में हुई है। इसमें कोई किसी प्रकार की शंका ही नहीं होनी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार एक व्यक्ति अपने यहां एक कक्ष में रहकर पूरा घर बनवाता रहता है, उसी प्रकार रामलला भी अपने महल में पहुंचकर अपनी देखरेख में निर्माण कार्य पूरा करा रहे हैं। एक  सवाल के जवाब में शंकराचार्य ने कहा कि मनुष्य को अपनी परंपरा के अनुसार ही चलना चाहिए और धर्म का पालन करना चाहिए।

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