बरेली: माह-ए-रमजान का आगाज, अनजाने में हुई गलती अल्लाह करता है माफ
बरेली, अमृत विचार। सोमवार को चांद का दीदार करने के बाद आज से माह-ए-रमजान का पाक महीना शुरू हो गया है। अल्लाह ने इस्लामिक साल के 9वें महीने को अपनी इबादत के लिए खास किया है। इस महीने हर मुस्लमान को 30 रोज़े रखना फर्ज है, वहीं पूरे महीने रोजा रखने के बाद चांद देख कर ईद मनाई जाती है। लेकिन रोजा रखने के कुछ खास नियम हैं, जिनका खास ध्यान रखना होता है। क्योंकि कुछ बातें जिनसे रोजा टूट जाता है। जिनका रोजेदारों को खास ध्यान रखना चाहिए, जिससे उनका रोज़ा न टूटे। इन्हीं बातों को लेकर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने अमृत विचार खास बातचीत की।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने बताया कि माह-ए-रमजान में अगर कोई रोजेदार अंजाने में कुछ खा या पी लेता है तो उसका रोज़ा नहीं टूटता। रोज़ेदारों के बालों में तेल लगाने, आंखो में सुरमा लगाने या किसी भी तरीके की खुशबू लगाने से भी रोज़ा नहीं टूटता। वहीं रोज़ेदार को किसी परेशानी के चलते उल्टी हो रही है तब भी रोजा प्रभावित नहीं होगा। लेकिन वहीं अगर मुंह भरकर उल्टी हुई तो रोज़ा टूट जाएगा। आंख, नाक या कान में दवाई डालने से भी रोज़ा को कई फर्क नहीं पड़ता है। वहीं रोज़े के दौरान अगर दांत में खाना फंस गया हो और उसे बाहर निकालते वक्त उसका मुंह में स्वाद आ जाए तो भी रोज़ा नहीं टूटेगा।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने आगे बताया कि रमजान शरीफ एक बड़ा ही मुकद्दस महीना है। जिसका आगाज हो चुका है, अल्लाह ताला ने रमजान का महीना अपनी इबादत के लिए खास किया और बंदों को हुक्म दिया कि चांद देखकर 30 रोज़े मुकम्मल किए जाएं। इसके साथ ही नमाज़ें तरावी शुरू की जाए और एक महीना पूरा होने के बाद चांद का दीदार कर ईद मनाई जाए।
बरेलवी ने आगे बताया कि माह-ए-रमजान के अलावा शेष 11 महीने बंदों के लिए हैं, जिसमें वह 5 वक्त की नमाज के साथ अपनी जिंदगी गुजारते हैं और अपने परिवार की परवरिश करते हैं। मौलाना ने आगे बताया कि शरीयत-ए-इस्मालिया ने 30 रोज़े फर्ज किए हैं, अगर कोई मुसलमान मर्द या औरत अकील बालिग रोज़ा नही रखता है तो वह अल्लाह का गुनेहगार होगा। इसी तरीके से तरावीह की नमाज है, जिसमें 30 तरावीह पड़ना जरूरी है। पवित्र किताब कुरान शरीफ की तिलावत होती है, जो हुकुम मर्दों पर है वही हुकुम औरतों पर भी है।
अगर औरत अकील बालिग है तो उस पर 30 रोज़े और 30 दिन तरावीह फर्ज है। शरीयत में मजबूर महिलाओं को वह वक्त गुरजने के बाद रोज़े रखने की इजाजत है। ऐसे ही अगर कोई मर्द बहुत सख्त बीमार हो, जिसमें दवाइयों की जरूरत पड़ती है तो वह सेहतमंद होने के बाद रोज़े मुकम्मल करे। मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने आगे बताया कि शरीयत ने गाली-गलौज सहित अन्य बुरी बात कहने को इनकार किया है। चाहे वो रोजा रखे हुए हो या नहीं।
इस्लाम यह कहता है कि गलत शब्द जुबान पर मत रखिए, क्योंकि गाली देना भी गुनाह है। चाहे रमजान के दिनों में गाली दो या आम दिनों में। हमेशा अच्छे लफ्जों और अच्छी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए। मौलाना आगे बताते हैं कि अगर कोई शख्स भूल-चूक से रोज़े में कुछ खा या पी लेता है और उसे बाद में ध्यान आता है कि उसका तो राजा है। ऐसी स्थिति में अल्लाह ताला ने माफी फरमाता है और उसका रोज़ा नहीं टूटेगा। रोज़ा बरकरार रहेगा। लेकिन उसे आगे ऐसा करने से बचना चाहिए।
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