Lok Sabha Election 2024: चुनावी तैयारी में भाजपा से पीछे हुआ गठबंधन; इस दिन घोषित हो सकता है भाजपा का प्रत्याशी
विशेष संवाददाता, अमृत विचार। कानपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के नाम पर अभी भी सस्पेंस कायम है। हालांकि सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी कांग्रेस के आलोक मिश्रा लगभग तय हैं। औपचारिक घोषणा बाकी है। भाजपा का प्रत्याशी शनिवार को घोषित किया जा सकता है। चुनाव प्रबंधन में भाजपा काफी आगे निकल चुकी है तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी बूथ प्रबंधन में जुटी हैं। कानपुर में कुल 1610 बूथ हैं। भाजपा बूथ स्तर पर रणनीति को धार दे रहा है तो सपा-कांग्रेस गठबंधन अभी बूथ गठन में ही व्यस्त हैं।
सपा जिला अध्यक्ष फजल महमूद कहते हैं कि संगठन ने विधानसभा क्षेत्र, जोनल, सेक्टर और बूथ कमेटियों का गठन करके प्रदेश कार्यालय भेज दिया है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद मॉनीटर कर रहे हैं। वहीं भाजपा ने बूथ कमेटी के साथ ही शक्तिकेंद्र तक की सरंचना की है। भाजपा का 370 सीटें जीतने के लिए प्रत्येक बूथ में 370 नये वोट जोड़ने का लक्ष्य है। यह वोट पार्टी के पक्ष में दिलाना भी है।
भाजपा में इस लक्ष्य को लेकर मंथन किया जा चुका है। फिलहाल बूथ प्रबंधन और शक्तिकेंद्रों के गठन और उन्हें खर्चा-पानी देने का काम चल रहा है। भाजपा में निचलेस्तर तक और संगठनात्मक मोर्चे पर पूरी तरीके से मजबूत करने की पार्टी की तैयारी की जा चुकी है। पार्टी ने बूथ सम्मेलन तक पूरे कर लिए हैं। चुनाव की तैयारी के करीब एक साल हो भी गया है।
प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों का शहर आकर बैठकें करने का एक चरण पूरा भी कर लिया गया है। लोकसभा क्षेत्र प्रभारी के भी कई दौरे लग चुके हैं। नेता बूथ अध्यक्षों को बूथ मालिकों कहकर संबोधित करते हैं। उन्हें जीत का मंत्र दिया जा रहा है। मंत्र हर बूथ पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में पड़े वोट से 370 अधिक वोट प्राप्त करने का लक्ष्य दिया गया। इस दौरान बूथ अध्यक्षों को बूथ की मजबूती के लिए बूथ समितियां के साथ नियमित बैठक करने, बूथ समितियां के सदस्यों का घर से भोजन लाकर आपस में मिलकर भोजन करने जैसे बिंदुओं पर जोर दिया जा रहा है।
शहर कांग्रेस अध्यक्ष नौशाद आलम मंसूरी कहते हैं कि बूथस्तर पर समितियों के गठन के साथ ही वार्डस्तर पर मीटिंगों का सिलसिला जारी है। सपा के साथ संयुक्त दो बड़ी बैठकें हो भी हो चुकी हैं। दूसरी तरफ सपा जिलाध्यक्ष फजल महमूद कहते हैं कि पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फार्मूला आगे रखकर चुनाव लड़ रहे हैं। यह वोट ही कानपुर में करीब सात लाख के आसपास है।
