Moradabad: जिले में चिकित्साधिकारियों ने ओपीडी से बनाई दूरी
मुरादाबाद, अमृत विचार। शासन के आदेश के बावजूद चिकित्सा अधिकारियों द्वारा ओपीडी में मरीज देखने के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। शासन का आदेश है कि सीएमओ हों या डिप्टी सीएमओ समेत अन्य चिकित्साधिकारी सप्ताह में कम से कम तीन दिन, दो-दो घंटे जिला अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की ओपीडी में मरीजों का परीक्षण करेंगे, लेकिन हकीकत इसके उलट है। एक वर्ष बीतने को है, पर अधिकांश चिकित्सा अधिकारियों ने अब तक ओपीडी में एक भी मरीज को नहीं देखा।
चिकित्साधिकारी खुद को स्वास्थ्य विभाग की विभिन्न योजनाओं, बैठकों और प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त बताकर मरीजों को देखने से बच रहे हैं। इससे जिला अस्पताल और सीएचसी पर मरीजों का दबाव झेल रहे चिकित्सकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। मरीजों की संख्या अधिक होने के कारण उन्हें घंटों कतार में लगकर इंतजार करना पड़ता है, जबकि शासन का उद्देश्य था कि वरिष्ठ और अनुभवी चिकित्साधिकारियों की मौजूदगी से मरीजों को बेहतर परामर्श और त्वरित इलाज मिल सके।
गौरतलब है कि महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं रतन सिंह पाल ने इस संबंध में स्पष्ट आदेश जारी किए थे। आदेश में कहा था कि सभी चिकित्साधिकारी अनिवार्य रूप से जिला अस्पताल अथवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की ओपीडी में बैठेंगे और मरीजों का चेकअप करेंगे। इसका उद्देश्य न सिर्फ मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराना था, बल्कि फील्ड लेवल पर स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार भी करना था।
हालांकि, जमीनी स्तर पर आदेश का असर दिखाई नहीं दे रहा है। मरीजों और उनके तीमारदारों का कहना है कि अस्पतालों में वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी केवल कागजों तक सीमित है। कई बार जटिल मामलों में मरीजों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता, जिससे उन्हें निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।
सीएमओ डॉ. कुलदीप सिंह का कहना है कि प्रशासनिक कार्यों का दबाव अधिक होने के कारण जिला अस्पताल की ओपीडी में नियमित रूप से बैठने का मौका नहीं मिल पाता। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि निरीक्षण के दौरान जब वे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जाते हैं, तो कभी-कभार मरीजों को देख लेते हैं। यदि शासन के आदेशों का सख्ती से पालन कराया जाए, तो सरकारी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और आम जनता को काफी राहत मिल सकती है।
