हरदोई: लाइफ केयर क्लीनिक हॉस्पिटल पर लगा ताला, सीएचसी अधीक्षक ने किया सीज, जानें वजह
शाहाबाद/हरदोई, अमृत विचार। बासित नगर मार्ग पर गिगियानी मोहल्ले में चल रहे लाइफ केयर क्लीनिक हॉस्पिटल को सीएचसी अधीक्षक द्वारा सीज कर दिया गया है। सीएचसी अधीक्षक द्वारा की गई इस कार्रवाई से नगर में बढ़ रहे झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा संचालित नर्सिंग होमों के प्रति स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही उजागर हो गई है।
लाइफ केयर क्लीनिक हॉस्पिटल पिछले एक साल से बासित नगर मार्ग पर मोहल्ला गिगियानी में बिना पंजीकरण के संचालित किया जा रहा था। स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को इस अवैध अस्पताल संचालन के बारे में पूरी जानकारी थी लेकिन अवैध हास्पिटल का संचालक स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों का बगल गीर था।
इस लिए स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों ने इस अवैध हॉस्पिटल के संचालक पर कोई ध्यान नहीं दिया। लेकिन जैसे ही इस हॉस्पिटल संचालक ने स्वास्थ्य विभाग से नजरें फेर लीं वैसे ही स्वास्थ्य विभाग को यह हॉस्पिटल अवैध नजर आने लगा।
नोडल अधिकारी एवं सीएचसी शाहाबाद अधीक्षक डॉ प्रवीण दीक्षित ने गुरुवार की देर शाम अस्पताल पर छापेमारी करके कार्रवाई की है। डॉक्टर प्रवीण दीक्षित के अनुसार हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन नहीं था, इलाज के पर्चे पाए गए और बड़ी मात्रा में अस्पताल में दवाइयां मिलीं। इसी आधार पर अस्पताल को सीज कर संचालक विपिन वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई।
शाहाबाद नगर क्षेत्र में इस वक्त डेढ़ दर्जन से अधिक हॉस्पिटल एंड मेटरनिटी सेंटर संचालित है, जो झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। क्वालिफाइड डॉक्टरों की डिग्रियों के साथ इन अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन कराया गया है। जिन डॉक्टरों के नाम से हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन हुआ वह डॉक्टर केवल अपना मासिक मानदेय लेते हैं।
अस्पताल रजिस्ट्रेशन के नाम पर शायद ही इन डॉक्टरों का कभी हॉस्पिटल में आना-जाना होता हो। स्वास्थ्य विभाग को यह सारी जानकारी है। कई अस्पताल संचालकों ने यहां पर ओटी भी डाल रखी है, लेकिन उनके ऊपर स्वास्थ्य विभाग की नजरे पूरी तरह से इनायत रहती हैं। इन हॉस्पिटल एंड मैटरनिटी सेंटर का संचालन पूरी तरह से झोलाछाप डॉक्टरों के हाथ में है।
अल्ट्रासाउंड से लेकर छोटे-मोटे ऑपरेशन तक यह झोलाछाप डॉक्टर करते हैं। झोलाछाप डॉक्टरों की यह हरकत स्वास्थ्य विभाग को पता नहीं है ऐसा तो फिलहाल नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की जानकारी में सारा गोरख धंधा हो रहा है, लेकिन मजबूरी बस स्वास्थ्य विभाग कार्रवाई करने के लिए मजबूर होता है।
अधिकांश अस्पतालों के संचालक है इंटरमीडिएट
प्राइवेट हॉस्पिटल एंड मैटरनिटी सेंटर के अधिकांश संचालक हाई स्कूल और इंटरमीडिएट पास है। एक या दो साल तक कंपाउंड्री करने के बाद यह कंपाउंडर स्वास्थ्य विभाग की मेहरबानी से बड़े अस्पताल के संचालक बन जाते हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के आला हुक्मरान इन अस्पताल संचालकों के प्रति मेहरबान क्यों है ? आखिर क्या वजह है स्वास्थ्य विभाग की मेहरबानी का ? इन अस्पतालों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती ?
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