Kanpur: कांशीराम अस्पताल में बढ़े सांस रोगी...शासन से मांगी ब्रोंकोस्कोपी मशीन, अभी मरीज चेस्ट अस्पताल के लगाते चक्कर
कानपुर के कांशीराम अस्पताल में प्रतिदिन सांस के 50 मरीज आ रहे है
कानपुर, अमृत विचार। शहर में जगह-जगह हो रही खोदाई के कारण वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण सांस रोगियों की संख्या भी बढ़ी है। इसके अलावा अधिक स्मोकिंग करने की वजह से युवाओं में सांस संबंधित समस्याएं बढ़ी है। सांस लेने में तकलीफ होने पर तमाम मरीज कांशीराम अस्पताल आते हैं, जिनकों जांच व इलाज के लिए मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल भेजा जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। कांशीराम अस्पताल में ही उनकी ब्रोंकोस्कोपी होगी।
रामादेवी स्थित कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय एवं ट्रामा सेंटर में आसपास क्षेत्र के साथ ही नौबस्ता, यशोदा नगर, श्याम नगर, घाटमपुर, साढ़, हमीरपुर, फतेहपुर समेत आदि क्षेत्र से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इस वजह से यहां की ओपीडी तीन से चार सौ मरीजों की होती है, जिनमें 40 से 50 मरीज सांस रोग से संबंधित रहते हैं।
लेकिन अस्पताल में सांस रोगियों के इलाज में सहायक पर्याप्त साधन और मुख्य जांच की सुविधा नहीं है। इसलिए यहां पर आने वाले मरीजों को परामर्श तो दिया जाता है, लेकिन जांच व इलाज के लिए उनको 16 किलोमीटर दूर स्थित रावतपुर में मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल में भेजा जाता है।
चेस्ट अस्पताल आने पर मरीजों को जांच व इलाज की सुविधा मिलती हैं, लेकिन आने-जाने में काफी दिक्कत होती है। इसे देखते हुए कांशीराम संयुक्त चिकित्सालय एवं ट्रामा सेंटर के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.स्वदेश गुप्ता ने शासन को पत्र लिखकर ब्रोंकोस्कोपी मशीन की मांग की है।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.स्वदेश गुप्ता के मुताबिक प्रतिदिन 20 से 30 मरीजों को जांच के लिए हैलट के मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल भेजा जाता है। ब्रोंकोस्कोपी मशीन आने पर मरीजों को जांच के लिए अन्य अस्पताल नहीं जाना होगा।
ब्रोंकोस्कोपी मशीन के फायदे
कांशीराम अस्पताल में तैनात चेस्ट फिजीशियन डॉ.ओपी राय ने बताया कि अस्पताल में काफी संख्या में सांस रोगी आते हैं, जिसे देखते हुए ब्रोंकोस्कोपी मशीन की मांग की गई है। ब्रोंकोस्कोपी के जरिये मरीज के श्वसन मार्ग और फेफड़ों की जांच आसानी से की जाती है। लगातार संक्रमण या खांसी के मरीजों या फिर एक्सरे में असाधारण सा दिखाई देने पर ही विशेषज्ञ ब्रोंकोस्कोपी जांच कराने की सलाह देते हैं। इसका इस्तेमाल बलगम, गले और फेफड़ों से ऊत्तकों का नमूना लेने के लिए किया जाता है। निमोनिया, टीबी और फेफड़ों के कैंसर के अलावा अन्य मरीजों के उपचार के दौरान भी ब्रोंकोस्कोपी जांच कराई जाती है। इस तकनीक से ये भी पता चलता है कि फेफड़े का कौन सा हिस्सा प्रभावित है।