प्रयागराज: क्षेत्राधिकार ना रखने वाली कोर्ट द्वारा पारित डिक्री आदेश शून्य

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Published By Vishal Singh
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्षेत्राधिकार के नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि क्षेत्राधिकार प्रदान करना एक विधायी कार्य है और इसे न तो पक्षों की सहमति से और ना ही किसी कोर्ट द्वारा प्रदान किया जा सकता है और अगर कोर्ट मामले पर क्षेत्राधिकार ना रखते हुए कोई डिक्री पारित करती है तो वह शून्य हो जाएगी। 

कोर्ट ने माना कि मौजूदा मामला लखनऊ पीठ के क्षेत्राधिकार में आता है। रिट न्यायालय द्वारा गलत ढंग से इस पर विचार और निर्णय दिया गया है, इसलिए एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आक्षेपित आदेश खारिज किए जाने योग्य है, साथ ही कोर्ट ने याची को उचित समाधान के लिए हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष याचिका दाखिल करने का सुझाव दिया। 

यह आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। दरअसल याची उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होने के बाद उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ में वैयक्तिक सहायक के पद पर नियुक्त किया गया। एक दिन याची को एक आपत्तिजनक व्हाट्सएप संदेश प्राप्त हुआ, जिसे डिलीट करने के प्रयास में याची ने निजी सचिव संवर्ग के व्हाट्सएप ग्रुप पर भूल से भेज दिया। अपनी गलती का एहसास होने पर याची ने तत्काल उक्त संदेश को ग्रुप से डिलीट कर दिया। याची ने अपनी गलती के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य पदाधिकारी से बिना शर्त माफी भी मांगी। 

याची के माफी मांगने वाले आवेदन पर सचिव प्रशासन ने नियम, 1999 के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी। विभागीय जांच के बाद याची की सेवाओं को समाप्त कर दिया गया। उक्त बर्खास्तगी आदेश से व्यथित होकर याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिस पर एकल न्यायाधीश ने अगस्त 2023 में विचार करते हुए पाया कि कथित जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है और जांच के दौरान अपनाई गई प्रक्रिया भी नियमों के विपरीत थी। अतः सेवा से बर्खास्तगी के आक्षेपित आदेश को खारिज कर दिया गया, साथ ही कोर्ट ने यह भी माना था कि सजा की मात्रा सिद्ध किए गए अपराध के अनुपात से कहीं अधिक है। 

अतः एकल न्यायाधीश ने बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए याची को सभी परिणामी लाभों के साथ सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया था। एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने वर्तमान अपील दाखिल की, जिस पर कोर्ट ने विचार करते हुए कहा कि मौजूदा विवाद जिला लखनऊ से संबंधित है। याची सचिवालय प्रशासन विभाग, लखनऊ में अपर निजी सचिव के रूप में कार्यरत था। संपूर्ण अनुशासनात्मक कार्रवाई लखनऊ में शुरू की गई और समाप्त हुई। अतः मामले पर विचार करने का क्षेत्राधिकार लखनऊ पीठ के पास है।

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