Covid-19: मौत के साये में भी करते रहे नौकरी, लेकिन व्यवस्था की मार ने स्वास्थ्यकर्मियों को बनाया बेरोजगार
लखनऊ, अमृत विचार। कोरोना काल को कौन भूल सकता है। कोरोना ने पूरी दुनिया को हिला के रख दिया था। हर तरफ सिर्फ भय का आलम था, लेकिन उस दौर में भी हम काम कर रहे थे, कई बार हम संक्रमित हुये, कुछ साथी हमारे कोविड का शिकार भी हो गये। उस दौर में कोरोना संक्रमण का डर ऐसा था कि हम अपने बच्चों और परिवार के पास नहीं जाते थे कि कहीं संक्रमण की जद में परिवार न आ जाये, क्योंकि घर चलाने के लिए हमें नौकरी की जरूरत थी, लेकिन चार साल जीवन को खतरे में डालने के बाद आज वही नौकरी चली गई और हम बेरोजगार हो गये। यह कहना है उन स्वास्थ्यकर्मियों का जो एनएचएम के तहत कोरोना काल में बतौर कोविड कर्मचारी काम कर रहे थे। उन्होंने यह बातें राजधानी स्थित डिप्टी सीएम के आवास पर कहीं।
दरअसल, गुरुवार को सैकड़ों की संख्या में स्वास्थ्यकर्मी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के आवास पर पहुंचे थे और उनसे मुलाकात की बात पर अड़ें थे, लेकिन डिप्टी सीएम से स्वास्थ्यकर्मियों की मुलाकात नहीं हो पाई।
गाजियाबाद से आये डॉ. सौरभ ने बताया कि इससे पहले भी कई बार हमलोग डिप्टी सीएम से मिल चुके हैं। डिप्टी सीएम की तरफ से हमलोगों को आश्वासन भी मिला था, लेकिन उसके बाद भी हमें नौकरी से निकाल दिया गया। एक अगस्त करीब को 2500 लोग बेरोजगार हो गये। जो लोग बेरोजगार हुये हैं, उनमें डॉक्टर, नर्स, टेक्निशियन, डाटा एंट्री ऑपरेटर शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी लिखित आदेश मांगते हैं, लेकिन शासन की तरफ से कोई लिखित आदेश दिया नहीं गया है। उन्होंने बताया कि बिना लिखित आदेश के सीएमओ हमारा समायोजन नहीं कर रहे हैं। इस उम्र में नौकरी जाने से हम सभी लोग बेरोजगार हो गये हैं ऐसे में घर चलाना दूभर हो रहा है।
बता दें कि इससे पहले जुलाई माह में भी डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के आवास पर भारी तादात में यह स्वास्थ्यकर्मी पहुंचे थे। उस समय डिप्टी सीएम ने कहा था कि सरकार स्वास्थ्यकर्मियों के साथ है, किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। 5500 के करीब कर्मचारियों को समायोजित कर लिया गया है। जल्द ही बाकी बचे कर्मचारियों का भी समायोजन होगा, लेकिन आज पहुंचे स्वास्थ्यकर्मियों का दावा है कि समायोजन के नाम पर करीब 50 लोगों को ही नौकरी मिली है।
