सरकारी नीतियां बनाने का आधार बनेगा राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर

एलोपैथिक डॉक्टरों की न केवल वास्तविक संख्या सामने आ जाएगी बल्कि यह भी तय हो जाएगा कि एक मरीज पर कितने डॉक्टर

सरकारी नीतियां बनाने का आधार बनेगा राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर

कोविड जैसी आपदा के समय सरकारों को चुनौतियों का प्रबंधन करने में भी होगी आसानी

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर (एनएमआर) लॉन्च हो जाने के बाद केन्द्र और राज्य सरकारों को जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में नीतियां तय करने में सुगमता हो जा जाएगी। इस डेटा बेस से देश में एलोपैथिक डॉक्टरों की न केवल वास्तविक संख्या सामने आ जाएगी बल्कि यह भी तय हो जाएगा कि एक मरीज पर कितने डॉक्टर हैं और वे किस क्षेत्र के चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। इतना ही नहीं, कोविड जैसी आपदा के समय सरकारों को चुनौतियों का प्रबंधन करने में भी आसानी होगी।

दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने बीते दिनों बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर (एनएमआर) लॉन्च किया है। इसके बाद अब एमबीबीएस, एमडी, एमएस, सुपर विशेषज्ञों सहित आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास करने वाले सभी डॉक्टरों को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के साथ खुद को फिर से पंजीकृत करना होगा। इस रजिस्टर (पोर्टल) को नेशनल मेडिकल कमिशन (एनमसी) और नेशनल हेल्थ अथॉरिटी ने मिलकर तैयार किया है। यह भारत में सभी एलोपैथिक (एमबीबीएस) पंजीकृत डॉक्टरों के लिए एक व्यापक और महत्वपूर्ण डेटाबेस होगा। इसका अहम उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशानुरुप हेल्थ इकोसिस्टम भी डिजिटल रूप से मजबूत करना और लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना है। नेशनल मेडिकल रजिस्टर एनएमसी एक्ट 2019 की धारा 31 के तहत जरूरी है।

रजिस्टर से क्या होगा फायदा

इस ऑनलाइन कवायद से देश में कुल डॉक्टरों की संख्या, देश छोड़ने वालों, प्रैक्टिस करने का लाइसेंस खोने वालों या जान गंवाने वाले डॉक्टरों की संख्या और विवरण जैसे पहलुओं की विस्तृत और समग्र तस्वीर सामने आएगी। इससे 13 लाख से अधिक डॉक्टरों के डेटा का सुनिश्चित होगा। एनएमआर को आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के तहत हेल्थकेयर प्रोफेशनल रजिस्ट्री का हिस्सा बनाया गया है, जिसमें मेडिकल प्रोफेशनल्स का पूरा विवरण होगा।

डॉक्टरों को मिलेगा यूनीक आईडी

पंजीकरण के बाद देश के सभी डॉक्टरों को यूनीक आईडी मिलेगी। दरअसल, वन नेशन वन रजिस्ट्रेशन की तर्ज पर नेशनल मेडिकल रजिस्टर को लागू किया गया है। इससे एमबीबीएस पास करते ही डॉक्टर का एनएमआर पर रजिस्ट्रेशन हो जाएगा और इससे अलग- अलग राज्यों में रजिस्ट्रेशन से लेकर किसी भी तरह की गड़बड़ी की संभावना खत्म हो सकेगी। इसके बाद सरकार पैरामेडिक्स और अन्य स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिए भी इसी तरह का रजिस्टर शुरू करने की दिशा में आगे बढ़ेगी।

पीएमएस अध्यक्ष डॉ. सचिन वैश्य ने बताया कि यह एक अच्छी पहल है, इससे न केवल वास्तविक डॉक्टरों की संख्या स्पष्ट होगी बल्कि मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर किस क्षेत्र के कितने विशेषज्ञ हैं, का भी पता चल जाएगा। इससे डबल्यूएचओ के मानकों को पूरा करने की दिशा भी तय होगी। प्लास्टिक सर्जन डॉ. डॉ. आदर्श कुमार ने बताया कि डॉक्टरों का डेटा बेस होने से सरकार को नीतियां बनाने में आसानी होगी। लीगल मामलों में भी जवाबदेही इस आधार पर तय करना सुगम होगा। यह भी स्पष्ट होगा कि कोई डॉक्टर जिस बीमारी का इलाज कर रहा है उसका एक्सपर्ट है भी या नहीं।

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