प्रयागराज : दहेज उत्पीड़न के लिए पति की महिला मित्र को जिम्मेदार ठहरना अनुचित

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Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न की झूठी और दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में प्रायः संदेह, गलतफहमी या आपसी मनमुटाव के कारण मामला दर्ज करवाया जाता है और ठोस साक्ष्यों तथा उत्प्रेरक परिस्थितियों के अभाव में ही कार्यवाही भी शुरू कर दी जाती है।

वर्तमान मामले में पति की महिला मित्र के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम और आईपीसी के तहत मामला दर्ज करवाया गया और आरोप लगाया गया कि महिला मित्र के साथ संबंध होने के कारण ही शिकायतकर्ता को दहेज के लिए पीड़ित किया जा रहा है तथा उसके साथ घरेलू हिंसा हो रही है। कोर्ट ने मामले की परिस्थितियों पर विचार करते हुए पाया कि याची पति की कॉलेज की एक मित्र है, ना कि उसकी कोई करीबी रिश्तेदार, जिसे मांगे गए दहेज से किसी भी तरह का कोई लाभांश प्राप्त होने की संभावना हो।

मित्र कभी भी रिश्तेदारों की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता है। ऐसे में कोर्ट ने याची के विरुद्ध आईपीसी की धारा 498-ए और डीपी एक्ट की धारा 3/4 के तहत कोई मामला बनता नहीं देखा। अंत में कोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इलाहाबाद की अदालत में उपरोक्त अधिनियमों की धाराओं के तहत लंबित मामले और आरोप पत्र को रद्द कर दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की एकलपीठ ने दहेज मामले में शुरू की गई दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही को समाप्त करते हुए पारित किया।

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