बरेली:पीलीभीत हाईवे...52 साल पहले अधिग्रहीत जमीन अब भी किसानों के नाम, अफसर भी चकराए

बरेली:पीलीभीत हाईवे...52 साल पहले अधिग्रहीत जमीन अब भी किसानों के नाम, अफसर भी चकराए

बरेली,अमृत विचार। सरकारी दफ्तरों में सितारगंज फोरलेन हाईवे और आउटर रिंग रोड के भूमि अधिग्रहण में हुए 80 करोड़ के घोटाले की गूंज के बीच एक 52 बरस पुराने मामले ने भी अफसरों को चक्कर में डाल दिया है।नेशनल हाईवे पर बरेली-पीलीभीत रोड के लिए 1972 में बिहारमान नगला में अधिग्रहीत भूमि अमल दरामद न होने की वजह से राजस्व अभिलेखों में अब भी किसानों के नाम दर्ज है। हाल ही में यह मामला विधान परिषद की वित्तीय एवं प्रशासकीय विलंब समिति के पास पहुंचने के बाद तहसील सदर में एक टीम गठित कर 52 साल पुराने रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं।

चार सदस्यीय टीम का गठन तहसीलदार सदर भानु प्रताप सिंह के नेतृत्व में किया गया है जो यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि किसकी लापरवाही से जमीन का अमल दरामद नहीं हुआ, हालांकि ये जांच अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। विधान परिषद की वित्तीय एवं प्रशासकीय विलंब समिति की जानकारी में यह मामला तब आया जब जितेंद्र पाल नाम के एक व्यक्ति ने अधिग्रहीत भूमि के कागजात में नाम दर्ज कराने के संबंध में पत्र लिखा। इसके बाद समिति की ओर से 25 जुलाई को इस प्रकरण में सुनवाई की और फिर जिला प्रशासन को एक महीने के अंदर इस पर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
समिति की ओर से कहा गया है कि यह गंभीर गलती जांच का विषय है और गलती करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। इसके बाद राजस्व विभाग के अधिकारी पुराने दस्तावेजों की जांच कर अधिग्रहीत भूमि की अमल दरामद न कराने के लिए जिम्मेदार अधिकारी को चिह्नित करने की कोशिश कर रहे हैं। अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व के निर्देश पर एसडीएम सदर गोविंद मौर्य ने तहसीलदार सदर, नायब तहसीलदार चौबारी, राजस्व निरीक्षक भोजीपुरा और क्षेत्रीय लेखपाल की समिति गठित कर 1972 के सभी कागजात की जांच करने का निर्देश दिया है और रिपोर्ट मांगी है।

कई दिन की कवायद बेनतीजा
विधान परिषद की वित्तीय एवं प्रशासकीय विलंब समिति के निर्देश पर गठित की गई टीम कई दिन से सदर तहसील के रिकार्ड रूम में पुराने कागजात खंगाल रही है लेकिन अभी यह जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। यह संभावना जरूर जताई जा रही है कि 1972 में लोक निर्माण विभाग ने पीलीभीत रोड के लिए भूमि का अधिग्रहण कराया था। लोक निर्माण विभाग की ओर से अगर नेशनल हाईवे के निर्माण के लिए अधिग्रहीत भूमि का अमल दरामद करने के संबंध में पत्र नहीं आया होगा तो राजस्व विभाग में यह कार्रवाई नहीं हुई होगी। इसी वजह से अधिग्रहीत जमीन पुरानी खतौनी में ही दर्ज रह गई। बहरहाल अभी जांच जारी है।