जयशंकर का पाकिस्तान दौरा

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में शामिल होने जा रहे विदेश मंत्री एस. जयशंकर  की पाकिस्तान यात्रा पर पूरी दुनिया की नजर लगी है। पिछले नौ वर्षों में किसी भारतीय मंत्री की यह पहली यात्रा होगी। पिछली बार 2015 में सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का दौरा किया था। 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने  कहा कि उम्मीद है कि  विदेश मंत्री  एससीओ के इतर भी बात करेंगे कि कैसे दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधरें, कैसे दोनों देशों के बीच नफरत घटे और मोहब्बत बढ़े? विदेश मंत्री पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं वे किसी बातचीत के लिए नहीं बल्कि उनके लिए एससीओ शिखर सम्मेलन की मजबूरी के कारण पाकिस्तान जाना जरूरी है। पाकिस्तान में भी जयशंकर के दौरे को सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही उम्मीद की जा रही है कि इस यात्रा से दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव कम करने में मदद मिल सकती है।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री  खुर्शीद महमूद कसूरी ने  कहा कि दोनों देशों को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने  सुझाव दिया कि पश्चिमी एशिया में भारी तनाव के समय पाकिस्तान और भारत को तनाव कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता था। इस यात्रा के पीछे दुनिया की निगाहें होने की वजह बताई जा रही है कि पश्चिमी एशिया में इजराइल, गाजा और लेबनान के लोगों को निशाना बना रहा है। ऐसे में दोनों देशों  का रुख क्या रहता है। यह एक महत्वपूर्ण क्षण है, जिसमें क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सोच-समझकर कदम उठाने की जरूरत है।

साथ ही जिम्मेदारी और समझदारी से काम करने की जरूरत है। यात्रा पूरी तरह से कूटनीतिक है, लेकिन दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण इतिहास भी  कूटनीतिकों का ध्यान खींच रहा है। दरअसल 15-16 अक्टूबर को पाकिस्तान में होने वाली चीन और रूस द्वारा स्थापित अंतर-सरकारी संगठन एससीओ की बैठक क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हो रही है, जिसमें चीन, रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा होगी। भारत और पाकिस्तान के बीच जिस प्रकार के रिश्ते हैं, उससे यह उम्मीद कम ही है कि कोई द्विपक्षीय बातचीत भी होगी।

पिछली बार जब भारत ने एससीओ की मेजबानी की थी तो उसमें पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भाग लेने आए थे, लेकिन दोनों देशों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। फिर भी सम्मेलन में जयशंकर की उपस्थिति से भारत की इस क्षेत्रीय मंच में भूमिका और प्रभाव को बल मिलेगा। कुल मिलाकर सम्मेलन में भारत की भागीदारी पाकिस्तान के साथ ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद क्षेत्रीय शक्तियों के साथ उसके चल रहे कूटनीतिक जुड़ाव को दर्शाती है।