हल्द्वानी: खजाना भरने वाली गौला में खनन की तैयारी को जंगलात की जेब खाली

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Published By Bhupesh Kanaujia
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हल्द्वानी, अमृत विचार। सरकार का हर साल खजाना भरने वाली गौला नदी में खनन की तैयारियों के लिए वन विभाग के पास बजट नहीं है। इसके पीछे वजह रोड टैक्स 50 पैसे प्रति क्विंटल से घटाकर 15 पैसे होना माना जा रहा है। राज्य गठन के बाद यह पहली बार हुआ है जब तैयारियों के लिए वन मुख्यालय से बजट मांगा गया है। बजट मिलने के बाद तैयारियां पूरी होने पर ही नदी में खनन शुरू होगा। फिलहाल गौला नदी में खनन शुरू होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। 

गौला नदी में 11 उपखनिज निकासी गेटों से 7452 वाहनों से खनन होता है। खनन से हर साल सरकार को डेढ़-दो सौ करोड़ की आमदनी होती है। वन विभाग गौला नदी में खनन से पूर्व तैयारियां करता है। इनमें सीमांकन पिलर्स व तटबंध बनाने, खनन वाहनों की आवाजाही के लिए गेटों पर रैंप व नदी में रास्ता बनाने, 11 गेटों पर 32 कंप्यूटर्स व स्टाफ की नियुक्ति, खोदी हुई खाई का भरान, अवैध खनन की रोकथाम के लिए गश्ती दल की नियुक्ति वगैरह की जाती है।

इसमें पहले तीन-चार करोड़ का खर्च होता था, जो अब बढ़कर चार से साढ़े चार करोड़ तक पहुंच गया है। इसका खर्च नदी में खनन से मिलने वाले रोड टैक्स से किया जाता है। पूर्व में 50 पैसे प्रति क्विंटल रोड टैक्स लिया जाता था लेकिन दो साल पूर्व सरकार ने एक प्रदेश एक रॉयल्टी की मांग पर रोड टैक्स 50 पैसे से घटाकर 15 पैसे कर दिया था। इस वजह से वन विभाग को तैयारियों के लिए पर्याप्त बजट नहीं मिल पा रहा है। एक तिहाई से भी कम बजट मिलने से वन विभाग के सामने तैयारियों के लिए आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। 
   
वन विभाग के अनुसार प्रति क्विंटल 15 पैसे रोड टैक्स वसूला जाता है। इस रकम को गौला नदी में खनन की तैयारियों में खर्च किया जाता है। पिछले खनन सत्र वर्ष  2023-24 में वन विभाग को लगभग 1.13 करोड़ रुपया मिला जबकि यदि 50 पैसे के हिसाब से वसूली होती तो 3.78 करोड़ रुपया मिलता। इसी तरह वर्ष 2022-23 में 95.90 लाख टैक्स मिला जो एक करोड़ का आंकड़ा भी नहीं छू सका। राजस्व में लगातार कमी की वजह से वन विभाग को बजट के लिए प्रस्ताव भेजना पड़ा है। 


गौला में खनन की तैयारियों को लेकर प्रस्ताव मुख्यालय को भेजकर बजट मांगा गया है। वन डिवीजन के पास जो भी बजट है,  फिलहाल उसी से काम शुरू करा दिया गया है। रोड टैक्स 50 पैसे से 15 पैसे होने से आमदनी पर असर हुआ है।
= हिमांशु बागरी, डीएफओ तराई पूर्वी वन डिवीजन हल्द्वानी

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