Kanpur: योग निद्रा से जागेंगे भगवान विष्णु; देवउठनी एकादशी से होगी मांगलिक कार्यों की शुरुआत, ऐसे करें पूजा...देव होंगे प्रसन्न

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Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, देवउठनी एकादशी को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने का प्रतीक होता है और इसके साथ ही भगवान विष्णु के द्वारा सृष्टि संचालन का पुनः आरंभ होता है। इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 12 नवंबर, मंगलवार को है।

भगवान विष्णु का जागरण

मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह तक योग निद्रा में रहते हैं, जिसे “चातुर्मास” कहा जाता है। यह चार महीने विशेष रूप से मांगलिक कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। यही कारण है कि इस दिन को विशेष रूप से विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।

इस वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग रहेगा। इन योगों के संयोजन से इस दिन की पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। यह योग धार्मिक कार्यों, पूजा और व्रत के लिए अत्यधिक लाभकारी होते हैं।

पूजा विधि-

देवउठनी एकादशी की पूजा विधि भी अत्यंत सरल और प्रभावशाली है।

स्नान और शुद्धता: सबसे पहले इस दिन घर में स्नान करके शुद्ध होने का महत्व है।
चौक और भगवान के चरण: घर के आंगन या बालकनी में चौक बनाकर भगवान विष्णु के चरण अंकित करें।

श्रीहरि की पूजा: भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं और शंख बजाकर उन्हें उठाएं। इस दौरान भगवान विष्णु के जागरण मंत्र का जाप करें:

“उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्।”

व्रत और भोग: पूजा के बाद भगवान को तिलक लगाकर श्रीफल अर्पित करें, गन्ना,सिंघाड़ा,मिठाई आदि का भोग लगाएं और पूजा की समाप्ति पर आरती करें।

तुलसी विवाह: इस दिन विशेष रूप से तुलसी माता की पूजा की जाती है। तुलसी को लाल चुनरी, सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें और शालिग्राम के साथ विधिपूर्वक पूजा करें।

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