प्रयागराज : त्वरित अदालती कार्यवाही पर आपत्ति करने के लिए वादी को लगाई फटकार

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Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में त्वरित कार्यवाही के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जहां सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर अक्सर लंबी अदालती कार्यवाही और बार-बार स्थगन के लिए न्यायपालिका की आलोचना की जाती है, वहीं जब जनता का कोई प्रतिनिधि वादी के रूप में कोर्ट में आता है तो वह त्वरित अदालती कार्यवाही पर आपत्ति करता है।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने मनोरमा तिवारी को चकबंदी अधिकारी की कार्यवाही पर सवाल उठाने के लिए फटकार लगाते हुए की और याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि त्वरित न्याय प्रदान करना एक गुण है, न कि एक दोष। कोर्ट ने चकबंदी अधिकारी द्वारा याची के मामले को त्वरित गति से आगे बढ़ाने का विकल्प चुनने पर याची द्वारा उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम,1953 के तहत अधिकारी की त्वरित कार्यवाही पर आपत्ति जताने पर उसे फटकार लगाई। मामले के अनुसार याची ने हाईकोर्ट में अपर चकबंदी आयोग, उत्तर प्रदेश द्वारा उसके आवेदन को खारिज किए जाने को चुनौती दी थी, जिसमें उसने चकबंदी अधिकारी, अरवा, कटरा, औरैया के न्यायालय से सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय के समक्ष किसी अन्य जिले में मामले को स्थानांतरित करने की मांग की थी।

याची ने आरोप लगाया था कि संबंधित चकबंदी अधिकारी दूसरे पक्ष के प्रभाव में आकर भ्रष्ट कार्यवाही कर रहे थे, जिसके परिणामस्वरुप वह याची द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को नजरअंदाज कर रहे थे और मामले में त्वरित तिथियां तय कर रहे थे। अंत में कोर्ट ने संबंधित अधिकारी द्वारा जारी आदेश पत्र का अवलोकन करते हुए पाया कि आदेश पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं दिखाया गया है कि चकबंदी अधिकारी दूसरे पक्ष के प्रभाव में था।

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