'कैंसर से लड़ना है तो आत्मविश्वास मजबूत रखना है': कैंसर को मात दे चुके ये शख्स बने मिशाल...कर रहे लोगों को जागरूक

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Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। कैंसर का नाम सुनते ही होश फाख्ता हो जाते हैं, मरीज की मनोदशा बिगड़ जाती है। जब इसका पता अंतिम चरण में चलता है तो यह और भी अधिक कष्टकारी हो जाता है। अस्पताल में डॉक्टरों से परामर्श लेकर बार-बार जांच कराने से मरीजों में चिड़चिड़ापन आ जाता है। मरीज व्याकुल व मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित होने लगते हैं लेकिन तमाम मरीज ऐसे हैं जो मजबूत आत्मविश्वास और दृढ़ मनोबल से इस रोग को हरा भी रहे हैं। वे समाज को बता रहे हैं कि कैंसर का मतलब मौत ही नहीं है, इसे हराया भी जा सकता है। बस, हिम्मत नहीं हारनी है और मजबूत इच्छाशक्ति करके डॉक्टरों पर भरोसा रखना है। कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। 

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सिविल लाइंस निवासी 73 वर्षीय ओपी सक्सेना फाइनेंस विभाग में ऑडिटर के पद से वर्ष 2011 में सेवानिवृत्त हुए थे। वर्ष 2002 में उनको मल्टीपल मायलोमा कैंसर हो गया था। जब इसकी जानकारी उनको व परिजनों को हुई तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई लेकिन उन्होंने दहशत भरे महौल में अपना धैर्य और हौसला नहीं खोया। अपने अंदर आत्मविश्वास जगाया कि वह कैंसर से जंग जीतकर जरूर रहेंगे। परिजनों को भी उन्होंने विश्वास दिलाया कि निरंतर जांच, इलाज व दवा से स्वस्थ हो जाएंगे। उनका यही जज्बा काम आया और वह बीते दो साल से स्वस्थ हैं। 

इसके साथ ही वह कैंसर से बचाव के लिए लोगों को जागरूक करने का भी काम कर रहे हैं। वहीं, रावतपुर गांव निवासी 59 वर्षीय दिलशाद को गुटखा खाने की वजह से वर्ष 2009 में मुंह में कैंसर हो गया था। पूरा परिवार परेशान था। ऐसे में परिजनों ने दिलशाद को भावनात्मक सहयोग प्रदान किया और नियम से जांच, दवा व इलाज कराया। ऑपरेशन के दौरान गांठ निकाली गई, जिसके बाद वह अब पहले से काफी ठीक हैं। वह एक हजार से अधिक लोगों को कैंसर से बचाव के प्रति जागरूक भी कर चुके हैं।

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