प्रयागराज : उचित प्रक्रिया द्वारा देय मुआवजे के पुनर्भुगतान का निर्देश कानूनी रूप से अस्वीकार्य

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Published By Vinay Shukla
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Amrit Vichar, Prayagraj : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुआवजे के पुनर्भुगतान से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जब कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त प्रक्रियाओं के आधार पर मूल खातेदारों को भुगतान किया जा चुका है तो न्यायालय द्वारा मुआवजे के नए भुगतान का निर्देश देने का औचित्य नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान मामले में भूमिधारक के रूप में दर्ज किसानों को मुआवजा पहले ही दिया जा चुका है, भले ही वह कानूनी रूप से हस्तांतरित व्यक्ति हो या नहीं।

विकास प्राधिकरण, गाजियाबाद ने पुरस्कारों और मध्यस्थ निर्णय के आधार पर काम किया है। अतः उन किसानों को दूसरा मुआवजा देने का औचित्य नहीं दिखता, जिन्होंने पहले ही अपनी भूमि हस्तांतरित कर दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कार्यवाही पूरी हो चुकी है और प्राथमिकी भी दर्ज हो गई है, तो 7 साल बाद वर्तमान याचिका दाखिल करना उचित नहीं है। इसके अलावा कोर्ट ने याचिका दाखिल करने पर भी संदेह जताते हुए कहा कि याचियों ने किसके निर्देश पर इतने विलंब से याचिका दाखिल की है। नए साक्ष्यों की अनुपस्थित और देरी का औचित्य बताएं बिना, लगभग 7 साल बाद खेमचंद और अन्य द्वारा दाखिल जनहित याचिका को मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने खारिज कर दिया।

मामले के अनुसार याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1956 की धारा 3-ए के तहत अधिसूचना जारी करने के बाद अनधिकृत व्यक्तियों ने भूमिका अधिग्रहण कर लिया। कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद मध्यस्थ कार्यवाही के बाद उक्त व्यक्तियों को बढ़ी हुई राशि सहित मुआवजा मिला। याचिका में अनधिकृत प्राप्तकर्ताओं से धनराशि वसूल कर उन्हें मूल किसानों को वापस करने की प्रार्थना की गई थी।

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