यूपी बजट सत्र: सदन में बोले मंत्री योगेंद्र उपाध्याय- कुलपतियों की नियुक्ति में आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती

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Published By Deepak Mishra
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने सोमवार को विधानसभा में कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं होती है लेकिन फिर भी 'सबका साथ, सबका विकास' के अनुरूप सरकार ने नियुक्तियों में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया है। 

हालांकि राज्य के विश्वविद्यालय में कुलपतियों तथा अन्य पदों पर नियुक्तियों में पिछड़े, दलित एवं अल्पसंख्यक (पीडीए) वर्गों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया। शून्य काल के दौरान सपा सदस्य संग्राम यादव ने नियम 56 के तहत यह मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया कि सरकार विभिन्न राज्य विश्वविद्यालय में कुलपति एवं अन्य पदों पर नियुक्तियों में पिछड़े, दलित तथा अल्पसंख्यक (पीडीए) वर्गों के साथ भेदभाव कर रही है। 

उन्होंने मांग करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति से लेकर असिस्टेंट प्रोफेसर और अन्य जितनी भी नियुक्तियां की गई हैं उनकी निष्पक्ष जांच कराई जाए, क्योंकि सरकार योग्य अभ्यर्थियों की अनदेखी करके कुलपतियों के साथ मिली भगत कर मनमाने तरीके से कुछ खास वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए नियुक्तियां कर रही है। यह राष्ट्र निर्माण से जुड़ा गंभीर विषय है इसलिए सदन में इस पर दो घंटे की चर्चा मंजूर की जाए। सपा सदस्य डाक्टर आर. के. वर्मा ने सूचना की ग्राह्यता पर बल देते हुए विभिन्न विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में अनियमितताएं किये जाने का आरोप लगाया। 

उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने इसका जवाब देते हुए कहा कि सपा सदस्य सदन में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "कुलपतियों के चयन में आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं होती है लेकिन फिर भी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के आदर्श वाक्य के अनुरूप सरकार ने नियुक्तियां की है और यह नियुक्तियां कुलाधिपति यानी राज्यपाल द्वारा की गई हैं।" 

उपाध्याय ने यह भी कहा, "सपा के दोनों सदस्यों ने जो चिंताएं व्यक्त की हैं उन्हें कुलाधिपति कार्यालय के पास भेजा जाएगा और उचित जांच करके निर्णय लेने का अनुरोध किया जाएगा।" उन्होंने कहा, "सदन में (सपा के) दोनों सदस्यों ने आरोप लगाए कि विश्वविद्यालय में जो अन्य नियुक्तियां होती हैं उनमें पिछड़े, दलितों तथा अल्पसंख्यकों की अनदेखी की जाती है।’’ 

उन्होंने कहा कि इस बारे में अवगत कराना है कि लखनऊ विश्वविद्यालय में शासन द्वारा आरक्षित पदों को भरे जाने के लिए विज्ञापन के माध्यम से चयन समिति बनाई जाती है जिसमें नियमानुसार अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिला और अल्पसंख्यक वर्ग समेत सभी वर्गों के सदस्य नामित किए जाते हैं।

उपाध्याय ने कहा, ‘‘शिक्षकों के चयन की कार्यवाही में इन सदस्यों की उपस्थिति रहती है। इस प्रकार यह प्रक्रिया पारदर्शिता पूर्ण होती है इसलिए मैं इस पूरे विषय को चर्चा का विषय ना मानते हुए अग्राह्य करने का अनुरोध करता हूं।" इस पर अधिष्ठाता पंकज सिंह ने इस सूचना को अग्राह्य घोषित कर दिया। इसके बाद सपा के कई सदस्य विरोध जताते हुए सदन से बाहर चले गए।  

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