बाराबंकी: पांच साल बाद अपनों से मिलीं पार्वती, डीएम ने धूमधाम से किया विदा...इस जगह जी रही थीं लावारिस जैसी जिंदगी    

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Published By Vishal Singh
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बाराबंकी, अमृत विचार: रफी अहमद किदवई जिला अस्पताल में पिछले पांच साल से रह रही पार्वती को आखिरकार उसका परिवार मिल गया। महोबा जिले के छितरवारा गांव से उसके पति विजय, पुत्री उपमा और बहन किरन उसे लेने पहुंचे। 14 अक्टूबर 2019 को शाम करीब 5 बजे सत्यप्रेमी नगर में रामाश्रम के पास पार्वती जख्मी हालत में मिली थी। स्थानीय सभासद पंकज मिश्रा ने पुलिस को सूचना दी। 

पुलिस के अनुसार वह ट्रेन से गिरकर घायल हुई थी। चोट के कारण उसकी याददाश्त चली गई थी। पार्वती पिछले पांच सालों से जिला अस्पताल में रह रही थी। वह अपने घर का पता सिर्फ छितवाड़ा, मध्य प्रदेश बताती थी। उसकी भाषा समझना भी मुश्किल था।

जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने महिला की स्थिति जानने के बाद उसके परिवार को खोजने का निर्णय लिया। तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद पता चला कि वह मध्य प्रदेश नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के महोबा जिले की रहने वाली है। डीएम ने पार्वती के परिवार को बाराबंकी बुलाया। परिवार से मिलकर पार्वती की आंखें भर आईं। वह अपनी पुत्री और बहन को गले लगाकर रो पड़ी। डीएम ने उपहार देकर पार्वती को उसके परिवार के साथ विदा किया।  

एसडीएम व डीएसटीओ ने खोज निकाला परिवार  
डीएम शशांक त्रिपाठी ने पार्वती के परिवारजन का पता लगाने के लिए तहसील नवाबगंज के एसडीएम न्यायिक विवेकशील यादव व डीएसटीओ प्रतिभा यादव को जिम्मेदारी सौंपी। एसडीएम विवेकशील यादव ने कुल्पाहार तहसील में तैनात रह चुके तहसीलदार कृषराज से संपर्क किया तो उन्होंने छितवारा गांव के लेखपाल राम कुमार से बात की। कड़ियां जुड़ती गईं और आखिरकार लेखपाल पार्वती के घर तक पहुंच गया। उसने पार्वती के पति विजय व जेठ संजय पटेरिया से बात कराई। वीडियो कॉल कराने पर परिवारीजनों ने पार्वती को पहचान लिया।  

विदा करने वालों का लगा तांता  
पार्वती के अपने घर वापस जाने की जानकारी मिलने पर उसे उपहार देकर विदाई देने वालों का तांता अस्पताल परिसर में जुटने लगा। बीते पांच सालों से एक परिवार सदस्य की तरह पार्वती की देखभाल करने वाली अस्पताल कर्मियों ने विदाई में पार्वती को तमाम उपहार दिए। पार्वती ने सबके साथ फोटो खिंचवाए और अपनी पुत्री, बहन व पति विजय से मिलवाया। सबके मोबाइल नंबर भी लिए।  

पार्वती पांच सालों तक जिला अस्पताल में रहीं। इससे मानवता पर भरोसा जगता है। पब्लिक सर्विस में ऐसे कार्य ही हमें संतोष देते हैं। यह कार्य हम किसी अन्य नौकरी में नहीं कर सकते हैं। सभी ने मिलकर मेहनत की और महिला को उसके परिवार से मिलवाया जा सका- शशांक त्रिपाठी, जिलाधिकारी।

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