प्रयागराज : कुरान द्वारा दी गई बहुविवाह की अनुमति के दुरुपयोग पर जताई चिंता

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक से अधिक विवाह करने के संबंध में कानूनी स्थितियों और परिस्थितियों को स्पष्ट करते हुए कहा कि कुरान द्वारा बहुविवाह की अनुमति दिए जाने के पीछे एक ऐतिहासिक कारण है। इतिहास में एक समय ऐसा था, जब आदिम कबीलाई संघर्षों में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे अनाथ हो गए,तब कुरान ने अनाथ बच्चों और उनकी माताओं को शोषण से बचाने के लिए सशर्त बहुविवाह के अनुमति दी थी, लेकिन मुस्लिम पुरुषों द्वारा यौन इच्छाओं की संतुष्टि और स्वार्थ के लिए उक्त अधिकार का दुरुपयोग किया जा रहा है।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यह सुनिश्चित करना मौलवियों का काम है कि मुसलमान अपने स्वार्थ के लिए बहुविवाह को उचित ठहराने हेतु कुरान का दुरुपयोग ना करें।एक मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी करने का तब तक कोई अधिकार नहीं है, जब तक कि वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार ना कर सके। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने पुलिस स्टेशन मैनाथर, मुरादाबाद में दर्ज आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत फुरकान और दो अन्य के खिलाफ पारित आरोप पत्र, संज्ञान और समन आदेश को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर विचार करते हुए की।

दरअसल विपक्षी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि याची ने अपने पहले विवाह के बारे में बताए बिना पीड़िता से विवाह कर लिया और उसके साथ दुष्कर्म किया। इस पर याची के अधिवक्ता ने आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध तय करने के मामले में तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध तय करने के लिए दूसरी शादी को अमान्य घोषित किया जाना अनिवार्य है। अंत में कोर्ट ने मामले की स्थितियों पर विचार करते हुए माना कि अगर दूसरा विवाह विशेष रूप से निषिद्ध संबंध के भीतर किया गया हो तो ऐसी स्थिति में शरीयत द्वारा ऐसे विवाह को बातिल (शून्य विवाह) घोषित कर दिया जाता है। अब कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि मुस्लिम पुरुष की दूसरी शादी को बातिल कौन घोषित करेगा। इस पर कोर्ट ने शरीयत अधिनियम के साथ-साथ पारिवारिक न्यायालय अधिनियम का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि वैसे तो शरीयत अधिनियम की धारा 2 के अनुसार विवाह के मामलों का फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ या पारंपरिक रूप से मौलवियों द्वारा ही निस्तारित किया जाएगा, लेकिन पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 के लागू होने के बाद विवाह की वैधता से संबंधित सभी प्रश्नों का निर्णय, चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो, परिवार न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा।

अतः परिवार न्यायालय को मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार किए गए मुस्लिम विवाह की वैधता तय करने का अधिकार होगा। अंत में कोर्ट ने दोनों पक्षकारों के मुस्लिम होने के कारण याची की दूसरी शादी को वैध करार देते हुए विपक्षियों को नोटिस जारी कर याची के विरुद्ध किसी भी प्रकार की बलपूर्वक कार्यवाही पर रोक लगा दिया और मामले को मई के अंतिम सप्ताह में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।

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