कर्नाटक: हनुमान जन्मस्थल मंदिर विवाद पर Supreme Court ने राज्य सरकार को भेजा नोटिस
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक के कोप्पल जिले में भगवान हनुमान के जन्मस्थान माने जाने वाले अंजनेया मंदिर के मुख्य पुजारी को न हटाने का निर्देश देते हुए मंगलवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने यह आदेश पारित किया। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की दलीलें सुनने के बाद कर्नाटक सरकार के संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया।
अदालत ने उन्हें कहा कि वे (अधिकारी) अंजनेया मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने और वहां के मुख्य पुजारी 'अर्चक' के पद से उन्हें हटाने के खिलाफ विद्यादास बाबाजी की याचिका पर पारित उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश का ईमानदारी से पालन करें।
पीठ ने कहा, ''हमने याचिकाकर्ता द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष दायर अवमानना याचिका में किए गए कथनों पर गौर किया है। नोटिस जारी करें। इस बीच संबंधित अधिकारियों को 14 फरवरी 2023 को उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश का ईमानदारी से पालन करने का निर्देश दिया जाता है।'' पीठ ने राज्य के संबंधित अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा, ''अदालती आदेश का पालन नहीं करने और किसी भी तरह की अवहेलना को गंभीरता से लिया जाएगा।''
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को मंदिर के पुजारी को अपने कर्तव्यों का पालन करने के साथ-साथ सभी बुनियादी सुविधाओं वाले एक कमरे में रहने की भी अनुमति दी, जो पहले उसे दी गई थीं। याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना याचिका को रद्द करने वाले उच्च न्यायालय के नौ अप्रैल 2025 के आदेश को चुनौती दी। शीर्ष अदालत के समक्ष श्री जैन ने दलील दी कि रामानंदी संप्रदाय से आने वाले याचिकाकर्ता मंदिर में मुख्य पुजारी की भूमिका निभाते हैं। पिछले 120 वर्षों से उनका संप्रदाय इस मंदिर में पूजा-अर्चना करता आ रहा है, लेकिन अचानक 2018 में कर्नाटक अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए पूरी तरह से अवैध तरीके से इस मंदिर का अधिग्रहण कर लिया गया।
उच्च न्यायालय ने तब (14 फरवरी, 2023 को) प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे याचिकाकर्ता को उक्त मंदिर में पूजा करने करने के अलावा, अर्चक कर्तव्यों का पालन करने में किसी भी अधिकारी द्वारा किसी भी तरह की बाधा या बाधा उत्पन्न न करें। अधिकारियों को तब यह भी निर्देश दिया गया था कि वे याचिकाकर्ता के खिलाफ मंदिर या उसके निवास के संबंध में कोई भी जल्दबाजी या बलपूर्वक कदम न उठाएं। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि 16 मार्च, 2025 को कोप्पल के डिप्टी कमिश्नर और असिस्टेंट कमिश्नर ने चुनाव आयुक्त के साथ मंदिर का दौरा किया। उन्होंने इस दौरान पूजा करने के लिए किसी तीसरे व्यक्ति को जबरन नियुक्त किया। याचिकाकर्ता के कर्तव्यों में बाधा डाली और उसे धमकाया। उन्होंने (अधिकारियों ने) उसे ''अपने काम से काम रखने'' का निर्देश दिया और घोषणा की कि पूजा और अन्य कर्तव्य केवल उनके द्वारा नियुक्त तीसरे व्यक्ति द्वारा किए जाएंगे। इस धमकी का उद्देश्य याचिकाकर्ता की आपत्तियों को दबाना और अनधिकृत प्रतिस्थापन को लागू करना था। यह आरोप लगाया गया कि इस कार्रवाई का उद्देश्य याचिकाकर्ता को परेशान करना और उसे परिसर खाली करने के लिए मजबूर करना था।
याचिकाकर्ता ने दीवानी अवमानना याचिका दायर की थी, जिसे नौ अप्रैल, 2025 को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के धार्मिक कर्तव्यों में बाधा डालने, धमकी देने और निवास में व्यवधान डालने वाली कार्रवाइयों ने संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 के तहत उसके जीवन, आजीविका और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन किया है।
याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने 14 फरवरी, 2023 से लगातार उत्पीड़न के आरोपों को नजरअंदाज कर दिया जिसमें उपयोगिता व्यवधान, मानहानिकारक अभियान और याचिकाकर्ता को ड्रग मामले में फंसाने का प्रयास शामिल है। गौरतलब है कि कोप्पल के जिला कलेक्टर ने कथित तौर पर कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997 की धारा 23 के तहत एक आदेश पारित किया था, जिसमें भगवान हनुमान के जन्मस्थान के मंदिर को अधिग्रहित करने के लिए कहा गया था इसे आमतौर पर अंजनेया मंदिर के रूप में जाना जाता है, जो चिक्करामपुर गांव, गंगावती तालुका, जिला कोप्पल, कर्नाटक की अंजनाद्री पहाड़ियों में स्थित है।
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