हाईकोर्ट: स्त्रीधन की वापसी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कार्रवाई में निर्धारण योग्य

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत स्त्रीधन की वापसी से जुड़े मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि स्त्रीधन की वापसी एक मुद्दा है, जिसका निर्धारण अधिनियम के तहत कार्यवाही में किया जाना चाहिए, न कि धारा 27 के तहत अलग से किए गए आवेदन के माध्यम से।

कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि धारा 25 पति या पत्नी को विवाह-विच्छेद के लिए डिक्री के बाद मासिक या सकल राशि द्वारा भरण-पोषण पर निर्देश के लिए आवेदन करने की अनुमति देती है और धारा 27 न्यायालय को डिक्री पारित करने का अधिकार देती है, जिससे विवाह के समय या उसके बाद प्रस्तुत किसी भी संपति के संबंध में प्रावधान शामिल किया जा सके।

कोर्ट ने माना कि जब अधिनियम के तहत किसी वैवाहिक कार्यवाही पर पक्षकारों के बीच निर्णय नहीं हो पाता है तो यह प्रावधान न्यायालय को अधिनियम की धारा 27 के तहत स्वतंत्र आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं देता है, जब तक कि अधिनियम, 1955 की धारा 9 से 13 और 13 ए और 13 बी में परिकल्पित अधिनियम के तहत आगे कोई कार्यवाही न हो। यह प्रावधान मुकदमेबाजी की बहुलता से बचने और पत्नी को स्त्रीधन की वापसी के लिए आवेदन करने का अधिकार देने के उद्देश्य से बनाया गया है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरिंदम सिंह और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना के खंडपीठ ने कृष्ण कुमार गुप्ता की प्रथम अपील को निस्तारित करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार 1 मई 2023 को पक्षकारों के बीच विवाह-विच्छेद हो गया। पत्नी द्वारा अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन करने पर पति ने कुल 7 लाख रुपए का भुगतान किया। परिवार न्यायालय ने पत्नी को स्त्रीधन की वस्तुएं लौटाने के बदले 10,54,364 रुपए का भुगतान पति को करने का निर्देश दिया। इस पर पति के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पक्षकारों के स्वामित्व वाली संपत्तियों के वितरण तथा स्त्रीधन वापसी का प्रावधान केवल तलाक की डिक्री में ही किया जा सकता है, अलग से नहीं और तलाक की डिक्री में स्त्रीधन के संबंध में कोई निर्देश नहीं था। अंत में कोर्ट ने स्त्रीधन के बदले अपीलकर्ता को 10,54,364 रुपए का भुगतान करने का निर्देश देने वाला निर्णय रद्द कर दिया, क्योंकि पत्नी ने अंतिम भरण-पोषण के रूप में 7 लाख रुपए और आंशिक निष्पादन के रूप में 2,10,000 रुपए प्राप्त कर लिए थे, इसलिए कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और निष्पादन कार्यवाही स्वत: ही समाप्त हो गई।

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