इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़ी आपत्ति: बिजनौर डीएम की अनावश्यक व्याख्या पर कोर्ट ने जताई नाराजगी
Strong objection of Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजनौर की जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दाखिल हलफनामे पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि डीएम ने अपने हलफनामे में यूपी-राजस्व संहिता नियमावली, 2016 के तहत एक प्रावधान की अनावश्यक अनुचित व्याख्या की है। यह न्यायालय कानून जानता है। कलेक्टर ने कोर्ट को नियम 67(6) के प्रावधानों की याद दिलाकर इस न्यायालय के कानून की समझ का अपमान करने का प्रयास किया है।
कोर्ट ने माना कि मामले में उक्त नियम की प्रायोज्यता या व्याख्या के बारे में कोई विवाद नहीं था। ऐसे में हलफनामे में इस प्रावधान का हवाला देने का कोई औचित्य नहीं बनता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकल पीठ ने ग्राम तैमूरपुर, बिजनौर में भूमि के कुछ हिस्सों पर कथित अतिक्रमण से संबंधित एक जनहित याचिका में संबंधित डीएम द्वारा दाखिल हलफनामे पर कड़ी आपत्ति जताते हुए पारित किया। मामले के अनुसार, सुनवाई करते हुए कोर्ट ने संबंधित भूमि की प्रकृति और उपयोग के संबंध में संबंधित डीएम से जवाब मांगा, जिसके अनुपालन में डीएम ने बताया कि संबंधित भूमि को राजस्व अभिलेखों में श्रेणी 6-2 (गैर कृषि उपयोग) के अंतर्गत कब्रिस्तान के रूप में दर्ज किया गया है।
उन्होंने यह भी बताया कि निरीक्षण के दौरान अतिक्रमण पाया गया था और तहसीलदार सदर, बिजनौर के समक्ष उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत 8 बेदखली मामले दाखिल किए गए थे। इस पर कोर्ट ने डीएम से एक और हलफनामे के माध्यम से लंबित बेदखली कार्यवाही की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी, जिस पर डीएम ने फिर से एक हलफनामा दाखिल कर बताया कि बेदखली मामलों में सुनवाई की अगली तारीख 15 मई 2025 तय की गई है। इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि राजस्व प्राधिकरण के समक्ष अगली तारीख वही है, जो जनहित याचिका में हाईकोर्ट के समक्ष तय की गई थी। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा निगरानी किए जा रहे मामलों में तारीखों का ऐसा मेल न्यायिक निगरानी के उद्देश्य को विफल कर देगा। इसके अलावा कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष मामलों की सुनवाई से एक या दो दिन पहले अधीनस्थ न्यायालय या प्राधिकारियों के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने भविष्य में इस प्रकार की गलतियों के प्रति सचेत रहने का निर्देश दिया। इसके बाद मामले की अगली सुनवाई पर डीएम ने अपने हलफनामे में यूपी राजस्व संहिता नियमावली, 2016 के नियम 67(6) का हवाला देते हुए बताया कि सहायक कलेक्टर से अपेक्षा की जाती है कि वे कारण बताओ नोटिस जारी होने के 90 दिनों के भीतर धारा 67 के तहत कार्रवाई पूरी करें और ऐसा न करने पर लिखित में कारण दर्ज करें। कोर्ट ने डीएम द्वारा उक्त नियम की अनावश्यक व्याख्या पर आपत्ति जताते हुए उनसे स्पष्टीकरण मांगा।
अंत में मामलों की शेड्यूलिंग में गड़बड़ी के बारे में बताते हुए संबंधित डीएम ने बिना शर्त माफी मांगते हुए अपने हलफनामे में कहा कि न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने का उनका कोई उद्देश्य नहीं था। उन्होंने आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराई जाएगी। अंत में कोर्ट ने उक्त अधिकारी के स्पष्टीकरण और माफी को ध्यान में रखते हुए वर्तमान मामले को आगामी 4 जुलाई 2025 के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
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