प्रयागराज : दुष्कर्म मामलों में हाशिए पर खड़े पीड़ितों के सामने प्रणालीगत कठिनाइयां चिंताजनक

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म से जुड़े एक मामले पर सुनवाई करते हुए ऐसे मामलों में हाशिए पर खड़े पीड़ितों के सामने आने वाली प्रणालीगत समस्याओं पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसी पीड़ितों की पीड़ा अक्सर मुकदमे से बहुत पहले ही शुरू हो जाती है यानी घटना के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराने के चरण से ही समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।

यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि कई बार सामाजिक और आर्थिक स्थिति ऐसे मामलों में पीड़ितों के भाग्य को नियंत्रित करती हैं, जैसे वर्तमान मामले में पीड़ित को एफआईआर दर्ज करवाने के लिए कई प्रयास करने पड़े। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने 1996 के दुष्कर्म मामले में अभियुक्त की सजा को बरकरार रखते हुए की। कोर्ट ने यह देखते हुए कि अभियुक्त की उम्र 70 वर्ष है और वह लगभग 6 महीने तक जेल में रह चुका है, इसलिए उसकी सजा को 10 वर्ष के कठोर कारावास से संशोधित कर 7 वर्ष के साधारण कारावास में बदल दिया।

कोर्ट ने मामले में महत्वपूर्ण साक्ष्य (घटना के समय पीड़िता द्वारा पहने गए कपड़े) की अनुपस्थिति के संबंध में अभियुक्त के तर्कों का खंडन करते हुए कहा कि मानवीय और यथार्थवादी दृष्टिकोण से देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि पीड़िता, जो एक गरीब महिला है, उसने घटना के समय पहने हुए कपड़ों को धो दिया होगा। कोर्ट ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि दुष्कर्म की शिकार एक गरीब महिला के पास ऐसे जघन्य अपराधों के साक्ष्यों को सुरक्षित रखने की सुविधा नहीं होती, जिसकी उन्हें कई बार भारी कीमत चुकानी पड़ती है। मामले के अनुसार 26 और 27 अक्टूबर 1996 की मध्य रात्रि को जब पीड़िता का पति काम पर गया था, उस समय आरोपी रात के लगभग 2 बजे घर में घुसा और पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया।

मामले की प्राथमिकी 9 नवंबर को दर्ज की गई। पीड़िता के पति का दावा है कि आरोपी एक खतरनाक व्यक्ति है जबकि पीड़िता और उसका पति अनुसूचित जाति व जनजाति से संबंधित हैं, इसलिए पुलिस उनके मामले में कई बार कहने के बावजूद कार्यवाही नहीं कर रही थी। अंत में कार्यवाही करते हुए ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी ठहराते हुए जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसे वर्तमान याचिका में चुनौती दी गई थी और तर्क दिया गया कि याचिका काफी विलंब से दाखिल की गई और अभियोजन पक्ष की कहानी झूठी और मनगढ़ंत है। हालांकि कोर्ट ने उक्त तथ्यों को खारिज कर दिया और पीड़िता के साथ दुष्कर्म की घटना को किसी भी संदेह से परे मानकर आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी।

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