National Doctor's Day: इलाज में संवेदनाएं बनाती हैं धरती के भगवान, चिकित्सक जो ट्रीटमेंट के साथ समाज में भी ला रहे बदलाव
पंकज द्विवेदी, लखनऊ, अमृत विचार : राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के अवसर पर अमृत विचार संवेदनशील उन चिकित्सकों को सम्मान करता है जो न केवल मरीजों का इलाज करते हैं, बल्कि समाज में बदलाव की इबारत भी लिखते हैं। राजधानी लखनऊ में कई चिकित्सक इसकी मिसाल हैं। ये चिकित्सक लावारिस और गरीब मरीजों की सेवा, दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने और लीवर कैंसर जैसे जटिल बीमारियों के उपचार के साथ-साथ समाज को बीमारियों से बचाने को जागरूकता अभियान चलाते हैं। इतना ही नहीं, जरूरतमंद मरीजों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने, रक्तदान करने और आर्थिक सहायता प्रदान करने में भी ये अग्रणी हैं। इनके प्रयासों से समाज में सकारात्मक बदलाव आ रहा है, जो अन्य चिकित्सकों और लोगों के लिए प्रेरणा बन रहा है। आज राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर ऐसे ही चिकित्सकों की बात जिनके लिए मानवता की सेवा ही उनका असली ध्येय है...
डॉ. संदीप मानवता की मिसाल, मरीजों के लिए मसीहा
केजीएमयू के ट्रॉमा सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. संदीप तिवारी न केवल एक कुशल चिकित्सक हैं, बल्कि मानवता की ऐसी मिसाल हैं, जिनके लिए मरीजों की सेवा ही सर्वोपरि है। उनके पास से कोई भी मरीज बिना इलाज के कभी वापस नहीं लौटा। चाहे रास्ते में मिला कोई लावारिस मरीज हो या जटिल परिस्थितियों में मदद की गुहार लगाने पहुंचा कोई मरीज का परिजन। साल 2018 की एक घटना इसका जीता-जागता उदाहरण है। डॉ. संदीप ट्रॉमा सेंटर की ओर जा रहे थे, तभी उनकी नजर परिसर के पास में पड़े एक लावारिस मरीज पर पड़ी। मरीज के शरीर से दुर्गंध आ रही थी, मक्खियां भिनभिना रही थीं, और लोग उसे नशेड़ी समझकर पास जाने से कतरा रहे थे। लेकिन डॉ. संदीप ने बिना देर किए उस मरीज को तत्काल इमरजेंसी में पहुंचाया और उसका इलाज शुरू करवाया। उनकी इस संवेदनशीलता ने न केवल मरीज को नया जीवन दिया, बल्कि आसपास के लोगों के लिए भी एक प्रेरणा बन गई।
यातायात जाम में भी दिखाई मानवता
केजीएमयू के उप नर्सिंग अधीक्षक प्रदीप गंगवार बताते हैं कि डॉ. संदीप का समर्पण केवल अस्पताल तक सीमित नहीं है। डालीगंज चौराहे पर भीषण जाम की स्थिति थी। हम लोग उस समय लिंब सेंटर में मौजूद थे। जाम की स्थिति देखकर वह स्वयं सड़क पर उतर आए और यातायात व्यवस्था को सुचारू करने में जुट गए। यह घटना उनकी जिम्मेदारी और समाज के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है।
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95 प्रतिशत मृत्युदर वाली बीमारी के मरीजों को मिल रहा 100 प्रतिशत जीवन
न्यूरो की जटिल समस्याएं, जिनमें 90-95 प्रतिशत मृत्युदर होती है, ऐसे जटिल केसों को एंडोवैस्कुलर न्यूरो सर्जरी तकनीक(खून की धमनियों के रास्ते दिमाग के अंदर तक पहुंच) से 100 प्रतिशत सफल इलाज मिल रहा है लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में, मरीजों को नया जीवन देने वाले न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ.दीपक कुमार ने बताया कि हमारा संस्थान, उत्तर भारत में इकलौता सरकारी संस्थान है जहां एंडोवैस्कुलर न्यूरो सर्जरी तकनीक से इलाज उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि गत सप्ताह एम्स पटना से एक आठ माह की बच्ची को रेफर होकर आयी थी, जिसके दिमाग में दुर्लभ गांठ(वेन ऑफ गॉलेन मेल फार्मेशन) थी, गांठ यानि दिमाग में खून की नलियां आपस में जुड़ी होती हैं, खून नलियों के जुडे होने से खून की सप्लाई ज्यादा हो रही थी और हृदय पर अत्यधिक दबाव था, अमूमन बच्चे हार्ट फ्लेयोर की स्थिति में आते हैं।
डॉ.दीपक ने बताया कि एंडोवैस्कुलर तकनीक से दिमाग में जाकर खून की नलियों के फ्यूस्चला को ग्लू और क्वायल से बंद कर दिया, आनुवांशिक फ्यूस्चला बंद होते ही हार्ट फ्लेयोर का खतरा स्वत: खत्म हो गया, अब बच्ची को न ही जीवन भर दवाएं लेनी पड़ेंगी बल्कि बच्ची सामान्य जीवन जीवन व्यतीत करेगी, अभिवावक भी निश्चिंत रहेंगे।
डॉक्टर ही नहीं अभिवावक बनकर करते हैं सर्जरी- डॉ. बीके ओझा
केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. बीके ओझा जैसे सर्जन विरले मिलते हैं, इन्हें दुर्घटनाग्रस्त लावारिश मरीजों का मसीहा कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि वह इलाज के साथ मरीज की स्थिति भी देखते हैं। इन्होंने अभी तक 30-35 ऐसे लावारिस मरीजों का इलाज किया है, जिनमें न केवल हजारों का खर्च वहन करना पड़ा बल्कि अपने खर्च पर उन्हें घर तक पहुंचाया है। इसके लिए वह स्मृति विहीन मरीजों को लाने वाले पुलिस कर्मियों से लेकर इलाज के बाद, समाचार पत्र में फोटो प्रकाशित कर परिवारीजनों की तलाश करते हैं, अपने रसूख का इस्तेमाल कर पुलिस महकमें का सहयोग लेकर मरीज के घर तक पहुंचते हैं। डॉ. बीके ओझा का कहना है कि केजीएमयू बड़ा संस्थान है, दुर्घटनाग्रस्त मरीजों को पुलिस लेकर आती है, उक्त मरीजों के अलावा करीब 200 से ज्यादा लावारिस मरीजों को इलाज स्वयं के निर्णय से करना पड़ा है, क्योंकि दूर दराज के मरीज बेहोशी की हालत में लाए जाते हैं, जीवन बचाने के लिए स्वयं से सर्जरी का निर्णय किया जाता है,आवश्यकतानुरूप दवाओं की व्यवस्था की जाती है। लावारिस मरीजों के बजट से सहयोग मिलता है, मगर घर तक पहुंचाने का बजट की व्यवस्था न होने की वजह से वहन करना पड़ता है। नेपाल व केरल तक मरीजों को उनके घर तक स्वयं के खर्च से पहुंचाया गया है। तमाम मरीजों को पुलिस के माध्यम से स्वयं सेवी संस्थाओं को भी सुपुर्द किया गया है।
सेप्सिस के रोगियों की बचा रहे जान- डॉ.तन्मय घटक
शरीर में होने वाले संक्रमणों में सेप्सिस संक्रमण अतिगंभीर स्थिति होती है। समय पर इलाज न मिलने पर मृत्यु की संभावना अत्यधिक होती है। एसजीपीजीआई के इमरजेंसी मेडिसिन के चिकित्सक डॉ.तन्मय घटक का कहना है कि हम इमरजेंसी में प्रतिदिन सेप्सिस के कई रोगियों को बचाते हैं। सेप्सिस संक्रमण में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बीमारी से लड़ने के बजाए विरोध में कार्य करती है और अपने हृदय, फेफड़े, गुर्दे या मस्तिष्क अंगों को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है। उन्होंने बताया कि यह संक्रमण बहुत साधारण बुखार, निमोनिया या त्वचा का संक्रमण से शुरू हो सकता है। समय पर इलाज के अभाव में यह मृत्यु का कारण बन सकता है। इमरजेंसी चिकित्सक होने के नाते हम सेप्सिस बंडल को बनाए रखते हुए ''गोल्डन ऑवर्स'' में उनका इलाज करते हैं। समय रहते इलाज करने के साथ ही उन्हें इंट्रावेनस फ्लूड और एंटीबायोटिक्स देकर संक्रमण के कारण को नियंत्रित किया जाता है ताकि सेप्सिस को बढ़ने से रोका जा सके। डॉ.तन्मय ने बताया कि ठीक होने के बाद मरीज का मुस्कुराता हुआ चेहरा हम चिकित्सकों की ऊर्जा को हज़ार गुना बढ़ा देता है।
असाध्य रोगियों का करा रहे निशुल्क इलाज- डॉ. सुमित रूंगटा
केजीएमयू के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. सुमित रूंगटा की मरीजों के प्रति प्रतिबद्धता जग जाहिर है। केजीएमयू में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग ही नहीं, डीएम गैस्ट्रोएंटरोलॉजी पाठ्यक्रम शुरू कराकर भविष्य के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों उपलब्धता सुनिश्चित किया है। वहीं केजीएमयू में लिवर ट्रांसप्लांट कार्यक्रम को मजबूत करने में डॉ.रूंगटा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने केजीएमयू को वैश्विक स्तर पर अग्रणी चिकित्सा केंद्रों के समकक्ष स्थापित किया। इसके अलावा गरीब मरीजों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर उन्होंने निःशुल्क उपचार सुनिश्चित किया। गुरु गोरखनाथ सेवा यात्रा समेत अन्य सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़कर प्रतिभाग करना ही इनके व्यक्तित्व को विशेष बनाता है।
मरीजों से बना रहें खून का रिश्ता- प्रो. तूलिका चंद्रा
केजीएमयू के ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. तूलिका चंद्रा ने बताया कि जरूरतमंद मरीजों का खून की कमी से इलाज प्रभावित न हो इसके लिए समाज में स्वैच्छिक रक्तदाताओं की जरूरत होती है, इसके लिए समाज के विभिन्न वर्गो में जाकर जागरूकता कार्यक्रम किए, लोगों के दिमाग से भ्रम दूर किया कि खून देने से स्वयं के शरीर को किसी प्रकार का नुकसान होता है। कई वर्षो के परिश्रम का परिणाम है आज हमारे पास समाज के विभिन्न वर्गों के तमाम ग्रुप हैं जो स्वैच्छिक रक्तदान के लिए तत्पर रहते हैं। उक्त श्रेणी में ही केजीएमयू के जूनियर डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ रक्तदान करते हैं। साल भर में करीब 500 यूनिट खून इस अभियान से एकत्र हो जाता है। ट्रॉमा में लाए गए लावारिस मरीजों की जान बचाने के लिए तत्काल खून की जरूरत होती है। वहीं ,थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों को भी बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत होती है। ऐसे मरीजों को रक्तदान से मिला खून ही चढ़ाया जाता है।
सीपीआर का प्रशिक्षण देकर बचा रहे जीवन- डॉ. रजनी गुप्ता
केजीएमयू के एनेस्थीसियोलॉजी विभाग की प्रो. डॉ. रजनी गुप्ता बताती है कि अनियमित जीवनशैली के कारण लोग हृदय रोगी हो रहें हैं। हार्ट अटैक व कार्डियक अरेस्ट की घटनाएं बढ़ रहीं हैं। कार्डियक अरेस्ट में मरीज के लिए शुरुआती तीन मिनट अहम होते हैं। इस दौरान सीपीआर देने से उसकी जान बचाई जा सकती है। सीपीआर कैसे दी जाती है इसकी सभी को जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए उनके विभाग में प्रत्येक सोमवार को विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा। साथ ही उनकी टीम शिक्षण संस्थानों में जाकर भी बच्चों और अध्यापकों को प्रशिक्षित कर रही है। मेरा मानना है कि यह अभियान टीबी, रेडियो, समाचार पत्रों व सोशल मीडिया पर प्रसारित होने से अधिक से अधिक लोग जागरूक हो सकेंगे। हार्ट अटैक से होने वाली मृत्युदर में भी कमी लाई जा सकती है। इसके आलावा एईडी मशीन से शॉक देना भी आम नागरिकों को जानकारी होना जरूरी है।
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जरूरतमंदों का मुफ्त में इलाज- डॉ. अर्चना
जानकीपुरम में होलिस्टिक हेल्थ केयर क्लीनिक की संचालक डॉ. अर्चना श्रीवास्तव जरूरतमंद मरीजों का मुफ्त में इलाज करती हैं। इसके लिए वह अक्सर निशुल्क शिविर का आयोजन कराती रहती हैं। साथ ही बीमारियों से बचाव को लेकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को भी जागरूक कर रहीं हैं। डॉ. अर्चना बताती हैं कि महिलाएं अपनी सेहत को लेकर लापरवाह रहती हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण अंचल की महिलाओं के साथ होती है। वह तब तक अस्पताल नहीं जाती जब तक बीमारी गंभीर न हो जाए। ऐसे में मेरे द्वारा निशुल्क शिविर लगाकर उन्हें विभिन्न बीमारियों के प्रति जागरूक करने के साथ उनका प्राथमिक इलाज भी मौके पर किया जाता है। मेरा मानना है कि एक चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया जाता है तो उन्हे अपना काम भी सेवा भाव से करना चाहिए।
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दिव्यांगों को बना रहे आत्मनिर्भर- डॉ. अनिल कुमार गुप्ता
केजीएमयू के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (पीएमआर) विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार गुप्ता एक कुशल चिकित्सक और संवेदनशील इंसान हैं। पिछले 15 वर्षों में उन्होंने सैकड़ों दिव्यांग मरीजों का इलाज कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया, ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें। उनकी मेहनत ने केजीएमयू के पीएमआर विभाग को प्रदेश में शीर्ष स्थान दिलाया। मरीजों के साथ-साथ सहयोगी चिकित्सकों, अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच भी उनकी स्नेहमयी और सम्मानजनक कार्यशैली प्रशंसनीय है। डॉ. गुप्ता का समर्पण और मानवता उन्हें एक असाधारण चिकित्सक बनाती है। उनका कहना है कि डॉक्टरी सिर्फ पेशा नहीं है, इसमें सेवाभाव जरूरी है। दिव्यांग मरीजों को कृत्रिम अंग देकर सुकून मिलता है।

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