हाईकोर्ट : किराएदारी अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण किराएदारों के जीवन की सुरक्षा
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किराएदारी अधिकारों से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि किराए पर ली गई इमारत के शीघ्र विध्वंस पर किराएदारों को आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। विशेषकर जब अधिकारियों ने उक्त परिसर का निरीक्षण किया हो और उसे ध्वस्त करना अनिवार्य पाया हो। कोर्ट ने माना कि जीर्ण-शीर्ण इमारत में किराएदार के जीवन को खतरे से सुरक्षा उत्तर प्रदेश शहरी परिसर किराएदारी विनियमन अधिनियम, 2021 के तहत व्यक्तियों के किराएदारी अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण है।
कोर्ट ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में आगे बताया कि किराएदारी अधिनियम की धारा 21 की उपधारा (2) के तहत मकान मालिक परिसर के किसी भी हिस्से की मरम्मत या निर्माण या पुनर्निर्माण या परिवर्तन या विध्वंस के मामले में किराया प्राधिकरण के समक्ष किराएदारों को बेदखल करने के लिए आवेदन कर सकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने अशोक कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किराएदारी अधिनियम के तहत किराएदारों के अधिकारों को उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 की धारा 331(1) के अधीन लागू किया जाना चाहिए, जिसमें प्रावधान है कि अगर नगर आयुक्त को ऐसा लगता है कि कोई संरचना गिरने के खतरे में है या किसी व्यक्ति के लिए खतरनाक है तो वह मालिक या अधिभोगी को खतरे से बाहर निकालने के लिए ऐसी संरचना को गिराने, सुरक्षित करने, हटाने या मरम्मत करने का आदेश दे सकता है। वर्तमान मामले में भवन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है और उसे गिराए जाने की आवश्यकता है। अतः कोर्ट ने माना कि किराएदारी अधिकारों से अधिक किराएदारों के जीवन को सुरक्षित करना महत्वपूर्ण है, इसलिए कोर्ट ने नगर निगम, अलीगढ़ के प्राधिकारियों को कानून के अनुसार जर्जर किराएदार परिसर को ध्वस्त करने और किराएदारों को अपना सामान हटाने का उचित अवसर देने का निर्देश दिया, साथ ही संबंधित परिसर में रहने वाले किराएदारों को यह निर्देश दिया कि वह अपने जीवन की सुरक्षा के प्रति सजग रहे और भवन के विध्वंस में कोई प्रतिरोध या आपत्ति ना करें।
मालूम हो कि याची ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान याचिका दाखिल कर उस इमारत को ध्वस्त करने के लिए पुलिस बल की सहायता मांगी, जो उसके कब्जे में है। याची ने तर्क दिया कि इमारत लगभग 100 साल पुरानी है। अब इमारत का रखरखाव और मरम्मत भी संभव नहीं है। याचिका में यह भी बताया गया कि नगर निगम ने भी निरीक्षण के बाद इमारत को गिराना आवश्यक माना है, लेकिन भवन में रह रहे किराएदारों के विरोध के कारण भवन को गिराने की कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही है। इसके साथ ही नगर निगम, अलीगढ़ के नगर आयुक्त ने भी व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को बताया कि आगामी मानसून के मौसम में जर्जर इमारत के कारण जानमाल के नुकसान की आशंका है। अतः कोर्ट ने इमारत को गिराने के आदेश जारी कर दिए।
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