स्कूलों के विलय मामले में यूपी सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका, सीतापुर में यथास्थिति बहाल रखने का आदेश

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों के विलय मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने विलय प्रक्रिया में उजागर हुई कथित अनियमितताओं के मद्देनजर सीतापुर के स्कूलों के विलय पर बृहस्पतिवार की यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने विशेष अपीलों पर सुनवाई करके यह आदेश दिया। 

मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायाधीश जसप्रीत सिंह की खंडपीठ के समक्ष बृहस्पतिवार को विशेष अपीलों पर राज्य सरकार व बेसिक शिक्षा विभाग के अधिवक्ताओं ने बहस की। इससे पहले याचियों के अधिवक्ता बहस कर चुके हैं। दोनों पक्षों के वकीलों ने अपनी दलीलों के समर्थन में नजीरों को भी पेश किया।

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त को नियत की है। पहली विशेष अपील सीतापुर के 5 बच्चों ने, और दूसरी भी वहीं के 17 बच्चों ने अपने अभिभावकों के जरिए दाखिल की है। इनमें स्कूलों के विलय में एकल पीठ द्वारा बीती 7 जुलाई को दिए गए फैसले को चुनौती देकर रद्द करने का आग्रह किया गया है।

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डा एल पी मिश्र व अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने दलीलें दीं। जबकि, राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थाई अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह के साथ बहस की। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश किए गए विलय के कुछ दस्तावेजों में कथित रूप से अनियमितताएं सामने आईं। जिनके मद्देनजर कोर्ट ने सीतापुर जिले में स्कूलों की विलय प्रक्रिया पर मौजूदा स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। 

गौरतलब है कि बीती 7 जुलाई को स्कूलों के विलय मामले में एकल पीठ ने प्रथामिक स्कूलों के विलय आदेश को चुनौती देने वाली दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया था। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने यह फैसला सीतापुर के प्राथमिक व उच्च प्रथामिक स्कूलों में पढ़ने वाले 51 बच्चों समेत एक अन्य याचिका पर दिया था। 

इनमें बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा बीती 16 जून को जारी उस आदेश को चुनौती देकर रद्द करने का आग्रह किया गया था, जिसके तहत प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की संख्या के आधार पर उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का प्रावधान किया गया है। याचियों ने इसे मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाला कहा था। 

साथ ही मर्जर से छोटे बच्चों के स्कूल दूर हो जाने की परेशानियों का मुद्दा भी उठाया था। याचियों की ओर से खास तौर पर दलील दी गई थी कि स्कूलों को विलय करने का सरकार का आदेश, 6 से 14 साल के बच्चों के मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करने वाला है। 

उधर, राज्य सरकार की ओर से याचिकाओं के विरोध में प्रमुख दलील दी गई कि विलय की कारवाई, संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए बच्चों के हित में की जा रही है। सरकार ने ऐसे 18 प्रथामिक स्कूलों का हवाला दिया था जिनमें एक भी विद्यार्थी नहीं है।

कहा कि ऐसे स्कूलों का पास के स्कूलों में विलय करके शिक्षकों और अन्य सुविधाओं का बेहतर उपयोग किया जाएगा। कहा था कि सरकार ने पूरी तरह शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिहाज से ऐसे स्कूलों के विलय का निर्णय लिया है।

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