प्रयागराज : कोर्ट रूम में हंगामा करने वाले अधिवक्ता के अनुशासनहीन आचरण की निंदा  

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील के अनुचित और अनुशासनहीन व्यवहार पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि वकीलों को न्यायालय में मर्यादा बनाए रखते हुए पेश आना चाहिए। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकलपीठ ने उस समय की, जब एक अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल सचिन गुप्ता की दूसरी जमानत याचिका खारिज होने के बाद कोर्ट रूम में हंगामा किया और कार्यवाही में बाधा उत्पन्न की। 

कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं की दोहरी जिम्मेदारी होती है, एक ओर उन्हें अपने मुवक्किल का निष्ठापूर्वक प्रतिनिधित्व करना होता है, वहीं दूसरी ओर कोर्ट में सम्मानपूर्ण और शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखना भी उनका कर्तव्य है। कोर्ट ने इस अवसर पर स्पष्ट किया कि अधिवक्ताओं को न्याय में सहयोग करना चाहिए, न कि न्याय प्रक्रिया को बाधित करना चाहिए। मालूम हो कि याची के विरुद्ध पुलिस स्टेशन गोरखनाथ, गोरखपुर में आईपीसी की धारा 376, 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66सी व 67ए के तहत गंभीर आरोप दर्ज हैं। 

उनका प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता ने दलील दी कि अभियुक्त दिसंबर 2023 से जेल में बंद है, और अब तक केवल दो गवाहों की गवाही हो पाई है, जिससे मुकदमे की प्रक्रिया अत्यधिक धीमी प्रतीत होती है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हुए ज़मानत मांगी। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि मौजूदा याचिका में पूर्व याचिका के मुकाबले कोई नया ठोस आधार नहीं है, सिवाय लम्बी कारावास अवधि के। ऐसे में कोर्ट ने जमानत याचिका को खारिज कर दिया, हालांकि ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मामले की सुनवाई में तेजी लाए। जब कोर्ट ने खुली अदालत में ज़मानत खारिज करने का आदेश सुनाया, तो अधिवक्ता ने बार-बार दलीलें देना जारी रखा और आदेश के बावजूद बहस करते रहे। इससे कार्यवाही बाधित हुई और कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। 

कोर्ट ने अधिवक्ता के इस व्यवहार को न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा के खिलाफ बताते हुए कहा कि आदेश पारित हो जाने के बाद किसी भी पक्ष को कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं होता। हालांकि कोर्ट ने इस आचरण को आपराधिक अवमानना की श्रेणी में माना, फिर भी फिलहाल अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से परहेज किया और केवल कठोर टिप्पणी करते हुए अधिवक्ता के आचरण की स्पष्ट निंदा की।

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