World Tiger Day: बाघ संरक्षण से मिली संजीवनी...लेकिन इंसानी टकराव बड़ी चुनौती
एक दशक पहले पीटीआर की 25 बाघों से हुई शुरुआत, अब संख्या 71 के पार
सुनील यादव, पीलीभीत। विशिष्ठ जैव विविधता से हरा-भरा जंगल... दलदली भूमि...। प्राकृतिक जल स्रोत और शिकार की पर्याप्त उपलब्धता से बेशक बाघ का साम्राज्य पीलीभीत टाइगर रिजर्व में समृद्ध होता जा रहा है। यहां 71 से अधिक बाघ हैं और विशेषज्ञों की मानें तो जल्द ही यह आंकड़ा 80 के पार पहुंचने वाला है। मगर, एक दशक देख चुके पीलीभीत टाइगर का एक दूसरा पहलू भी है, जिसमें बाघों की बढ़ती दहाड़ के बीच चुनौतियों का भी अंबार है।
यह दूसरा पहलू बाघ-इंसानी टकराव से जुड़ा है। इसमें लगभग दोनों की जानें जा रही हैं, मगर जिम्मेदारों को जंगल और बाघ तब ही नजर आते हैं, जब मानव-वन्यजीव संघर्ष की कोई घटना होती है। फिलहाल बांसुरी नगरी में दोनों कैसे सुरक्षित रहें, इस पर कोई ठोस रूपरेखा नहीं बन सकी है।
रुहेलखंड का एकमात्र सघन जंगल, जिसे पीलीभीत टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है। टाइगर रिजर्व बनने के बाद शुरू हुई बाघ संरक्षण परियोजना से संजीवनी मिली तो यहां बाघ-तेंदुओं के अलावा अन्य वन्यजीवों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि भी हुई। वर्ष 2014 की गणना में यहां महज 25 बाघ मिले थे। इसके बाद वर्ष 2018 की गणना में बाघों की संख्या बढ़कर 65 हो गई। वहीं वर्ष 2022 आते-आते आंकड़ा 71 पार पहुंच गया। वृद्धि का यह अनुपात सुखद और समृद्धि का परिचायक भी रहा।
जिम्मेदारों की कर्तव्यनिष्ठा जरूर रंग लाई, मगर इसके साथ ही बाघ-इंसानी टकराव जैसा नकारात्मक पहलू भी अस्तित्व में आने लगा। इस टाइगर रिजर्व के बाघों ने जंगल से बाहर निकलना शुरू कर दिया और यह सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है। परिणाम यह हुआ है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ने लगीं। इसमें न सिर्फ इंसानों ने जान गंवाई, बल्कि बाघों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। चालू साल की बात करें तो शुरू के चार महीनों में इसमें सफलता भी मिली, मगर मई आते-आते एक बाघिन की उग्रता ने इस अभियान पर भी बट्टा लगा दिया।
जनपद में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए प्रदेश की पहली जिला स्तरीय मानव-वन्यजीव संघर्ष निवारण समिति का गठन किया गया है। यह दीगर बात है कि इस समिति के माध्यम से भी अभी तक महज कागजी घोड़े ही दौड़ाए गए हैं। फिलहाल पीलीभीत टाइगर रिजर्व के इस नकारात्मक पहलू से कब छुटकारा मिलेगा, इसका जवाब जिम्मेदारों के पास अभी तक नहीं है।
इंसानों के साथ 22 बाघ भी गंवा चुके हैं जान
आंकड़ों के मुताबिक टाइगर रिजर्व बनने के बाद अब तक बाघ हमलों में 59 इंसान जान गंवा चुके हैं। चालू वर्ष की बात करें तो शुरुआती चार महीनों में इक्का-दुक्का बाघ हमले हुए, मगर 14 मई से लेकर 17 जुलाई के बीच महज 65 दिनों में बाघ हमले में सात इंसान जान गंवा चुके हैं। सिलसिला सिर्फ इंसानों की मौत तक ही सीमित नहीं रहा। अब तक 22 बाघों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इनमें तीन शावक शामिल हैं। बाघों की मौत आपसी संघर्ष और अस्तित्व को लेकर हुई।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि पीटीआर क्षेत्र में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने की दिशा में वृहद स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर वनकर्मियों की टीमें सक्रिय रहती हैं। ई-सर्विलांस टावर स्थापित कर निगरानी भी जा रही है। वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ वन सीमा से सटे ग्रामीणों को भी जागरूक किया जा रहा है।
