लखीमपुर खीरी: टाइगर ग्रास नहीं टाइगर केन बनी तेंदुओं की पहली पसंद
टीएन अवस्थी/ राकेश श्रीवास्तव, लखीमपुर। जिले का धौरहरा वन रेंज अब तेंदुओं की नई आरामगाह बन गया है। बहराइच के जंगलों से आकर ये शिकारी तेंदुए अब गन्ने के खेतों में इस तरह बस रहे हैं मानो यह उनका असली जंगल हो। केले की फसल उन्हें घना वन लगती है, और गन्ना तो जैसे उनके लिए टाइगर ग्रास बन गया हो। यहां की नदियां, खेतों में पल रहे सियार, कुत्ते, बंदर और छुट्टा पशु और इंसान तेंदुओं का आहार बन रहे हैं।
धौरहरा वन रेंज की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो यह क्षेत्र शारदा और घाघरा नदी से घिरा हुआ है। इस नदी के छोटे बड़े करीब 40 नाले भी हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में ज्यादातर गन्ना और दूसरे नंबर पर केले की फसल होती है। तेंदुए गन्ना को टाइगर ग्रास और केले को जंगल समझ डेरा जमा रहे हैं। वही खेतों में घूमते सियार और गोवंशीय पशु के अलावा कुत्ते और बंदर इन तेंदुओं का भोजन बनते हैं। नदियों की वजह से उनके पीने के लिए पर्याप्त पानी भी उन्हें जंगल का अहसास कराता है।
इसी बीच तेंदुए जब आबादी में आते है या किसान खेतों में काम कर रहे होते हैं तो तेंदुए इंसानों पर भी हमलावर हो रहे हैं। वन अधिकारियों के मुताबिक, तेंदुए बहराइच के जंगलों से नदी पार कर इस इलाके में प्रवेश करते हैं और फिर वातावरण देख वापस नहीं लौटते। अब तक कई तेंदुए पकड़े भी जा चुके हैं। हाल में ही पकड़े जाने के बाद दो तेंदुओं की मौत हो चुकी है। करीब आठ ग्रामीण घायल हो चुके हैं।
क्या कहते हैं वन अधिकारी
धौरहरा वन रेंज रेंजर नृपेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि अब तक कई तेंदुए पकड़े जा चुके हैं। अब भी घूम रहे तेंदुओं को पकड़ने के लिए ऑपरेशन जारी है, लेकिन जंगल और खेती के बीच की सीमा जुड़ी है। तेंदुए जंगल से ज्यादा अब गन्ने में रहना पसंद कर रहे हैं। यही असली चुनौती है।
