Kannauj: सुंगध की यात्रा में छिपी है विरासत की महक

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Published By Muskan Dixit
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कन्नौज: कन्नौज का पौराणिक नाम कन्याकुब्ज था। मिहिर भोज के समय में इसे महोदया नाम से भी जाना जाता था। कन्नौज कभी प्रमुख ऐतिहासिक नगर था, जिसे  इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। गंगा नदी के तट पर स्थित यह नगर पुरातात्विक दृष्टि से प्राचीन सांस्कृतिक विरासत है। यह नगर इतना संपन्न था कि इसे राजा हर्ष, नागभट्ट द्वितीय जैसे राजाओं ने राजधानी बनाया। राजा हर्ष के बाद यहां कई राजाओं ने राज किया। वर्ष 554 में यह मौखरी वंश की राजधानी बना। छठी सदी में सम्राट हर्ष ने राजधानी बनाया। 647 में इसकी संपन्नता को धक्का लगा। लेकिन 715 ई. में यशोवर्मन काल में फिर से कन्नौज में संपन्नता का सूरज चमका। 815 में गुर्जर-प्रतिहारों ने इसे संवारा। 1080 गहरवारों के शासन में इसकी समृद्धि बढ़ी। मगर 1194 ई. में यहां के वीर राजा जयचंद्र की पराजय के बाद इसकी समृद्धि का सूरज अस्त हो गया। जयचंद्र के समय कन्नौज में धर्म-संस्कृति कैसी थी, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बंगाल के राजा को धर्म और सभयता के प्रचार-प्रसार के लिए कन्नौज से ब्राह्मणों को बुलाना पड़ा था।

राजा जयचंद की मौत के बाद, अस्त हो गया समृद्धि का सूरज

जयचंद की मौत के बाद कन्नौज गुलाम वंश के अधीन हो गया। तेहरवीं शताब्दी में मोहम्मद तुगलक ने कन्नौज को उजाड़ दिया। लुटेरों का बोलबाला हो गया। मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। कांस्य युग के समय के कई पूर्व ऐतिहासिक हथियार और उपकरण यहां मिले हैं। पुराणों में कन्नौज का अश्वतीर्थ के रूप में वर्णन किया गया है। वर्तमान में कन्नौज अपने परफ्यूम उद्योग के लिए जाना जाता है। कन्नौज में टैराकोटा से बनी चीजें और प्राचीन सिक्कों का मिलना बहुत आम बात है। यहां मौर्य और गुप्त वंश के समय की चीजों को भी देखा जा सकता है।

राजा वेणु की सात पुत्रियां, देवी के रूप में स्थापित 

रामायण काल में कन्नौज के तेजस्वी व महापराक्रमी राजा वेणु हुए, जिनकी सात पुत्रियां थीं। इन सभी सातों पुत्रियों ने कठिन तप किया और वह देवी स्वरूप में परिवर्तित हो गईं। कन्नौज के अलग-अलग क्षेत्रों में इन सभी देवियों माता फूलमती, माता क्षेमकली, संदोहनी देवी, गोवर्धनी देवी, शीतला देवी, सिंह वाहिनी देवी और मौरारी देवी के  मंदिर स्थापित हैं।

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