Bareilly: आजादी के बाद देश की नींव मजबूत करने में जुटे रहे सेनानी
बरेली, अमृत विचार। आजादी की जंग में बरेली जनपद के 398 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था। 79 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने के दौरान 15 अगस्त 1947 की सुबह की अनुभूति तो नहीं है, मगर वो गर्व भरे पल हम सभी के दिलों में आजादी का अहसास हमें कराते हैं। देश को आजादी दिलाने के बाद भी सेनानियों ने जिले की नींव को मजबूत करने में भी अपना योगदान दिया। जिले के 20 से ज्यादा सेनानी लोकसभा, विधानसभा सदस्य, जिला परिषद और नगर पालिका के चेयरमैन और सदस्य के रूप में जनप्रतिनिधि भी बने थे।
बरेली जनपद का इतिहास स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और बलिदानों से भरी हुई है। सरकारी आंकड़ा 398 का है, लेकिन न जाने कितने ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे, जिन्होंने अपना सब कुछ लुटाकर स्वतंत्रता आंदोलन को धार दी थी, लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सके। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार स्वतंत्रता सेनानियों का रिकार्ड देखने पर 20 से अधिक उन सेनानियों का जिक्र सामने आया, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के बाद भी देश को तरक्की की राह पर ले जाने का प्रयास किया। ये सेनानी लोकसभा और विधानसभा सदस्य, जिला परिषद और नगर पालिका बरेली के चेयरमैन और सदस्य के रूप में लंबे समय तक कार्य किया और बरेली को समृद्धि की ओर से ले जाने का काम किया था।
जिला प्रशासन के रिकार्ड से लिए गए कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संक्षिप्त गाथा के कुछ अंश, जिन्होंने राजनेता बनकर भी जनकल्याण के हक में काम किया था। इसमें जियाराम सक्सेना निवासी बमनपुरी, असहयोग आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहते हुए 1922 में 3 वर्ष की कैद हुई। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के साथ नगर पालिका बरेली के चेयरमैन भी रहे थे। टिकैत राम वर्मा पुत्र बंशीधर निवासी महावीर टोला कूंचा मुंशी भागीरथ, 1920 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए।
स्कूलों और कालेजों का बायकाट कर आंदोलन को सफल बनाने को कौम परस्त अखबार निकालकर लोगों को एकजुट किया और जेल भी गए थे। 1930 से 1931 तक शहर कांग्रेस कमेटी बरेली के प्रधान रहे। दामोदर स्वरूप सेठ पुत्र बहादुर लाल सेठ निवासी बिहारीपुर, आरंभ से ही क्रांतिकारी थे। प्रसिद्ध काकोरी केस के मुकदमे के अभियुक्त थे। कई बार जेल गए। वह अंतरित संसद के सदस्य रहने के साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान भी रहे थे।
दुर्राब सिंह पुत्र कंधर सिंह निवासी उरला थाना आंवला को व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान छह माह की कैद हुई थी। जिला परिषद के सदस्य भी रहे। नौरगंलाल पुत्र शंकर लाल निवासी बमनपुरी, सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर छह माह कैद हुई। सत्याग्रह आंदोलन में शामिल होने पर एक वर्ष तक जेल रहे। भारत छोड़ो आंदोलन में 9 अगस्त 1942 में जेल गए और 1944 से सेंट्रल जेल बरेली से छूटे थे।
जिला भ्रष्टाचार निरोधक समिति के अध्यक्ष रहने के साथ 1962 से लेकर 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। पृथ्वी राज सिंह निवासी बुधौली थाना भुता, डिप्टी कलेक्टर का पद त्यागकर कांग्रेस में शामिल हुए। 19 वर्षों तक जिला कांग्रेस कमेटी बरेली के अध्यक्ष रहे। उन्हें नमक सत्याग्रह आंदोलन में छह माह की सजा हुई। 1937 में विधानसभा के सदस्य भी रहे थे।
प्रताप चंद्र आजाद पुत्र रंगीलाल सिन्हा निवासी रामबाग (रामपुर गार्डन), 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए थे। 1947 में उत्तर प्रदेश छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहने के साथ जिला परिषद बरेली के अध्यक्ष भी रहे।
ब्रज मोहन लाल शास्त्री पुत्र भजन लाल निवासी कूचा सीताराम, असहयोग आंदोलन में पढ़ाई छोड़ी। 1930 में आईपीसी की धारा 124 में दो वर्ष की सजा हुई। भारत छोड़ो आंदोलन में 30 माह तक नजरबंद रहे। बाद में नगर और जिला परिषद के अध्यक्ष रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। बाबूराम पुत्र भोलानाथ निवासी ग्राम चठिया बरेली, सत्याग्रह आंदोलन में नौ माह सजा काटी। भारत छोड़ो आंदोलन में 18 माह जेल में रहे। आजादी मिलने के बाद 1957 में विधानसभा सदस्य भी चुने गए थे।
मोती सिंह वकील निवासी बुधौली फरीदपुर, असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर 1921 में छह माह की सजा काटी। बरेली जिला बोर्ड के चेयरमैन भी रहे थे। शिवराज बहादुर पुत्र मुंशी हजारी लाल निवासी बीजाऊ तहसील नवाबगंज, 1941 में वह आजाद प्रेस में सरकार विरोधी इश्तहार छापने में पकड़े गए और मुकदमा चला। इसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। सतीश चंद्र पुत्र बृजलाल निवासी नया टोला आलमगिरीगंज, 1936 में कांग्रेस से जुड़े। 1940 व 1941 और 1942-44 में आजादी की लड़ाई में भाग लिया। 1940 से 42 तक अंतरित संसद के सदस्य रहे। कई बार लोकसभा सदस्य चुने गए और केंद्रीय मंत्रीमंडल में मंत्री भी रहे।
इन्होंने कई आंदोलन में निभाई थी अहम भूमिका
अब्दुल रऊफ निवासी आजमनगर, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ दिनों के लिए नजरबंद रहे, उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। अब्दुल वाजिद आनरेरी मजिस्ट्रेट का पद त्यागकर कांग्रेस में शामिल होने के बाद 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और एक वर्ष कैद की सजा हुई। सेंट्रल असेंबली के सदस्य रहने के साथ बरेली नगर पालिका के अध्यक्ष भी रहे। अधो नारायन निवासी पूरनमल बजरिया, 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर छह माह कैद हुई, 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन में छह माह जेल गए।
व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन करने पर एक साल कैद हुई। भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर 9 अगस्त 1942 काे पकड़े और 1943 में छोड़े गए। यह नगर पालिका बरेली के सदस्य भी रहे। वहीं, गाेपीनाथ साहू पुत्र कंटी लाल निवासी कूंचा रतनगंज, 1930 और 1940 में छह और नौ माह की सजा हुई। भारत छोड़ो आंदोलन के सिलसिले में 9 अगस्त 1942 को नजरबंद हुए, 1944 में जेल से छूटे। बाद में नगर पालिका बरेली के सदस्य रहे और जिला व कांग्रेस शहर कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। चिरंजीव लाल गुप्ता पुत्र रामजीमल निवासी मोहल्ला जकाती, 1918 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय अधिवेशन में बतौर बरेली के प्रतिनिधि शामिल हुए। 1920 में बरेली जिला कांग्रेस के उप मंत्री रहे। राजकीय और अराजकीय समितियों के सदस्य भी रहे।
डॉक्टर होकर भी आजादी में कूदे, बाद में विधायक भी बने
दरबारी लाल शर्मा निवासी जगतपुर, बारादरी, 1930 में एक वर्ष कैद हुई। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण 1932 में छह माह कैद और 15 रुपये जुर्माना भी हुआ। इंडियन मेडिकल बोर्ड के सदस्य रहे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहने के साथ जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे। वहीं कुसुम कुमारी पत्नी दरबारी लाल शर्मा, 1930 में कांग्रेस में शामिल हुईं और नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने पर 1930 में ही छह माह कैद हुई। वह जिला परिषद बरेली की सदस्य भी रहीं।
